शोर ही शोर है
भाग दौड़ की,
इस दुनियां में,
शोर ही शोर है।
न बादल है,
न बरखा है,
केवल नाच रहा,
कलयुगी मोर है।
माना यह काल परिवर्तन का है,
नूतन नवीनतम का है,
किन्तु
इस बदलती परिवेश में,
सब कुछ बदल गया है।
सभ्यता संस्कृति और समाज,
है तो कल से बेहतर आज,
पर….
विकास कि इस होड में,
उन्मुक्त सांड बन
दौड रहे इंसान
शायद भौतिक सुखों की चाह ने
इंशा को अंधा बना दिया,
क्यो नही…….?
मशीनों की इस दुनियाँ में
अब पैसो का ही तो जोर है।
भाग दौड़ की इस दुनिया में
शोर ही शोर है।
योगेन्द्र निषाद घरघोड़ा (छ ग) 496111
Nice
धन्यवाद
bahut khoob…
धन्यवाद
वाह बहुत सुंदर