सतत संग्राम

सोचता था तूने मुझे छोड़ दिया

पर पीछे मुड़ा तो साया तेरा ही था

हम टूटे थे उस वक्त जरूर

पर खुद्दारी से लड़कर सफल होंगे ज़रूर

जज़्बा है शोर नहीं

काली रात है पर होगी भोर कोई

बस इतना करम करना

की अपना मकसद ना भूलूं

आज की थकान में कल के

उफान की महक छोड़ जाऊँ कहीं

हमारा साथ छोड़ दिए जो

सुबह श्याम उन्हें यलगार की गूंज सुनानी अभी बाकी है

रात गहरी जरूर है

पर सुबह आनी अभी बाकी है

दीये की लौ बुझने से पहले

भभकना अभी बाकी है

दूर ही बैठे तमाशबीन को

को असली मालिक की पहचान करानी बाकी है

हम खो गए है अप्रचलित हो गए है

कहना था तुम्हारा

आज लिख रहे है

पड़वाएंगे तुम्हें बाद में इसका वादा रहा

उसकी रहमत के बिना एक पत्ता नहीं हिलता है

तू क्या खुद को रब समझता है

बाप बाप होता है

तेरे हजारों सितम के बराबर उसका एक

हाथ होता है

आने वाला वक्त क्या होगा पता नहीं

पर सतत संग्राम के बोल अभी गूंजेंगे

बहुत जोर

सीतमगर हो तुम अपनी वफाएं निभाते जाओ

हम मज़दूर वर्ग है अपना हथौड़ा मारते जायेंगे

स्वर्णिम अक्षरों में आज तुम लिखो

पर कल तुम्हारा हम लिखेंगे

वो खून ही क्या जो सिर्फ बह जाए

आने वाले ज़माने में उबाल ना ला पाए

आज की लड़ाई तुम जीते जरूर हो

गुरूर तुम्हारा तोड़े ऐसा हथौड़ा तुमने देखा कहा है

आज की चुप्पी में कल के शोर की गूंज

सुना रहा है।

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