सतत संग्राम
सतत संग्राम ज़िन्दगी का अंग बन गए है
मज़दूर हू मजबूर नहीं
लॉकडाउन का बहाना दे के तुमने मेरी नौकरी छीनी
भूखे हम है तोह भोजन छिना भी जा सकता है
किसान हू मेरे उत्पाद का दाम कॉर्पोरेट ठीक करेंगी
10 रुपए की मकई 200रुपए मे तुम बेचोगे
हमारे हक़ को मारोगे और हमे अदृश्य विकास की कहानी सुनाओगे और हम मान जाएंगे
पहले जमींदार थे जो हम पर शोषण करते थे
अब कोरोर्पोरेट के हाथों तुम हमे बेचोगे
भूल ना जाना हम किसान है
भूख जो तुम्हे लगती है तोह हम अन्न संस्तान है
हम बंजर ज़मीन पर अपने खून से फसल ऊगा सकते है
तोह हम इस बहरी सरकार के लिए धमाका भी कर सकते है
जितने भी जल कमान तुम चलाओ पेलेत गन की बौचार तुम करोगे
उतने हमारे हौसले बुलंद होंगे
जय मज़दूर जय किसान
किसानों के हक में बोलती हुईं और हकीकत बयान करती हुई बहुत सुंदर रचना
Thanks a lot
बहुत ही अच्छा
Thanks
True line nice poem
Thanks
बेहतरीन
Thanks