सत्य को भूलना मत

खिलौना मत समझना
किसी धनहीन को तुम
मन चले तोड़ दिया
मन चले जोड़ लिया।
भूख पर वार करके
दबाना मत उसे तुम,
दिखाकर लोभ-लिप्सा
दबाना मत उसे तुम।
सरल, कोमल व भोला
मुफलिसी का हृदय है,
दिखाकर शान अपनी
लुभाना मत उसे तुम।
अहमिका में स्वयं की
सत्य को भूलना मत
संपदा देखकर तुम
मनुज को तोलना मत।
अक्ल को साफ रखना
शक्ल मुस्कान रखना
धन नहीं मन का मानक
सदा यह भान रखना।

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Responses

  1. “संपदा देखकर तुम मनुज को तोलना मत।..
    धन नहीं मन का मानक सदा यह भान रखना।”
    कभी भी किसी की धन संपदा देखकर प्रभावित नहीं होना चाहिए, वरन् उसका व्यवहार देखकर प्रभावित होना चाहिए, इसी उच्च स्तरीय सोच को प्रस्तुत करती हुई उत्कृष्ट कथ्य और सुन्दर शिल्प लिए हुए कवि सतीश जी की बहुत उत्तम रचना,उम्दा लेखन

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