सफ़र छोड़ना पड़ा
सौ बार सरे-राह सफ़र छोड़ना पड़ा।।
मंज़िल पे हर परिन्द को पर छोड़ना पड़ा।।
पुश्तैनी घर की जब मेरे दहलीज़ गिर पड़ी
घर को बचाने के लिए घर छोड़ना पड़ा।।
दहशत के लिए हो रहे हैं हमले चारसू
हमलों के ही ज़वाब में डर छोड़ना पड़ा।।
अब तो मिला जो काम वही रास आ गया
जब बिक नहीं सका तो हुनर छोड़ना पड़ा।।
इनसान ने डंसने की रवायत संभाल ली
सांपों को शर्म आयी जहर छोड़ना पड़ा।।
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Pragya Shukla - August 2, 2020, 8:25 pm
सुन्दर कविता 👏👏
अभिज्ञात - August 2, 2020, 9:55 pm
धन्यवाद
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - August 2, 2020, 9:15 pm
बहुत खूब
अभिज्ञात - August 2, 2020, 9:56 pm
शुक्रिया
Satish Pandey - August 2, 2020, 11:27 pm
बहुत बढ़िया
अभिज्ञात - August 3, 2020, 5:41 pm
धन्यवाद