सबकुछ ये सरकार खा गई
राशन भाषण का आश्वासन देकर कर बेगार खा गई।
रोजी रोटी लक्कड़ झक्कड़ खप्पड़ सब सरकार खा गई।
देश हमारा है खतरे में, कह जंजीर लगाती है।
बचे हुए थे अब तक जितने, हौले से अधिकार खा गई।
खो खो के घर बार जब अपना , जनता जोर लगाती है।
सब्ज बाग से सपने देकर , सबके घर परिवार खा गई।
सब्ज बाग के सपने की भी, बात नहीं पूछो भैया।
कहती बारिश बहुत हुई है, सेतु, सड़क, किवाड़ खा गई।
खबर उसी की शहर उसी के दवा उसी की जहर उसी के,
जफ़र उसी की असर बसर भी करके सब लाचार खा गई।
कौन झूठ से लेवे पंगा , हक वाले सब मुश्किल में।
सच में झोल बहुत हैं प्यारे ,नुक्कड़ और बाजार खा गई।
देखो धुल बहुत शासन में , हड्डी लक्कड़ भी ना छोड़े।
फाईलों में दीमक छाई सब के सब मक्कार खा गई।
जाए थाने कौन सी साहब, जनता रपट लिखाए तो क्या?
सच की कीमत बहुत बड़ी है, सच खबर अखबार खा गई।
हाकिम जो कुछ भी कहता है,तूम तो पूँछ हिलाओ भाई,
हश्र हुआ क्या खुद्दारों का ,कैसे सब सरकार खा गई।
रोजी रोटी लक्कड़ झक्कड़ खप्पड़ सब सरकार खा गई।
सचमुच सब सरकार खा गईं,सचमुच सब सरकार खा गईं।
अजय अमिताभ सुमन
लगातार अपडेट रहने के लिए सावन से फ़ेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम, पिन्टरेस्ट पर जुड़े|
यदि आपको सावन पर किसी भी प्रकार की समस्या आती है तो हमें हमारे फ़ेसबुक पेज पर सूचित करें|
Devi Kamla - January 9, 2021, 6:37 pm
बहुत सुंदर लिखा है सर
Geeta kumari - January 9, 2021, 7:57 pm
आजकल के माहौल का बख़ूबी यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है । सुन्दर अभिव्यक्ति
Ajay Amitabh Suman - January 9, 2021, 8:55 pm
धन्यवाद
Ajay Amitabh Suman - January 11, 2021, 6:23 am
सधन्यवाद
Satish Pandey - January 9, 2021, 9:51 pm
कवि अजय अमिताभ जी की इस कविता में वर्तमान राजनीतिक हालात का बखूबी चित्रण किया गया है। इसमें ज्वलंत समस्याओं का समावेश बहुत ही शिद्दत से हुआ है। कविता की पंक्तियाँ सीधे मन को छू रही हैं। समूची दृष्टि से देखा जाये तो यह सिस्टम पर प्रहार करती बेहतरीन कविता है।
Ajay Amitabh Suman - January 10, 2021, 6:45 am
धन्यवाद आपका
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - January 9, 2021, 10:21 pm
बहुत खूब
Ajay Amitabh Suman - January 10, 2021, 6:45 am
धन्यवाद
Rishi Kumar - January 10, 2021, 6:06 am
बहुत सुंदर 👌👌👌
Ajay Amitabh Suman - January 10, 2021, 6:45 am
धन्यवाद