समझ जाता है मन यह
आ मेरे मीत आ जा
बात मन की बता जा
उग रहे भाव हैं जो
मेरे मन को दिखा जा।
छिपाना छोड़ दे तू
कोपलें चाहतों की
समझ जाता है मन यह
दिशाएं आहटों की।
तेरे नयनों की भाषा
जान लेते नयन हैं,
क्योंकि लाखों में तू ही
एक इनका चयन है।
जरा सा पास में आ
बैठ जा दो घड़ी तू
चुराकर मन मुआ यह
दूर है क्यों खड़ी तू।
अतिसुंदर भाव
वाह सर बहुत खूब
हृदय की गहराईयां दिख रही हैं इस कविता में
सुन्दर पंक्तियां