समाज की वास्तविक रूप रेखा(भाग_२))
घर की दहलीज जब लाघीं तो ऐसा मंजर देखा
पानी जब बिकना शुरू हुआ
तब हमे ये मजाक लगा
बीस रूपये लीटर पानी की बोतल
पानी का भी अकाल पड़ा
ऑक्सीजन की जब कमी हुई
हवा को भी बिकते देखा
यहां आंखों देखी सच्चाई,नहीं कोई रूपरेखा
अमेजॉन पर शॉपिंग कर रहे
मॉल में जाकर खरीदारी कर रहे
हजारों लाखों की खरीदारी करते
फिक्स रेट पर पेमेंट करते
ठेले पर सब्जी फल वालों से
दो़़दो पॉच रुपए का मोल भाव करते देखा।
उन गरीब ठेले वालों पर लोगो का रौब
यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करती हुई सटीक अभिव्यक्ति
सादर अभिनंदन गीता जी🙏🏻🙏🏻
समाज के वास्तविक सत्य को उजागर करती हुई यह रचना,
-बहुत सुंदर
आपका बहुत बहुत आभार अमिता जी
समाज की व्यवस्था पर चोट करती हुई सुंदर पंक्तियां
अतिसुंदर