समाज की वास्तविक रूप रेखा(भाग_१)

घर की दहलीज जब लाघीं ‌तो ऐसा मंजर देखा‌
यह आंखों देखी सच्चाई ,नहीं कोई रूपरेखा
मैं पहले बताती हूं परिवहन का किस्सा
क्योंकि मैं भी शामिल थी इसमें बन हिस्सा
खुद को महामारी से बचाने को
कुछ लोगों ने था कपड़ा लिपटा
कुछ लोगों ने मास्क लगाया था
कुछ को स्टाइल में जाते देखा
यह आंखों देखी सच्चाई ,नहीं कोई रूपरेखा
कहने को बहुत सी गौशाला है
गायों को सरकारों ने यूं पाला है
गायें तो सड़कों पर अनगिनत भटक रही
लगता गौशाला में भी लगा सिर्फ ताला है
गायें भूखी प्यासी गाड़ियों और रेलगाड़ियों से टकराती

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Responses

  1. समाज की वास्तविकता को दर्शाती हुई आपकी कविता
    वाह ,बहुत खूब एकता जी,
    अपनी कविता का संपूर्ण अंश प्रेषित करें।

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