सम्भाल कर रक्खी थीं जो तेरी यादें
सम्भाल कर रक्खी थीं जो तेरी यादें,
चलो आज उनको सरेआम करते हैं।
मन ही मन में जो बस गई है दिल में,
आओ अब तेरी उस तस्वीर को खुलेआम करते हैं।
तेरी इजाजत के बगैर ही लिख दी है जो जागीर मैने तेरे नाम।
आज खुलकर हम अपना सब कुछ तेरे नाम करते हैं,
जो हर पल हर लम्हें पर हो ही गया है इख़्तेहार तेरा,
तो छोड़ कर हम अपनी रूह तेरे हाथ बाकी ज़माने के नाम करते हैं॥
~ राही (अंजाना)
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