सयानी
कविता- सयानी
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तेरी एक ज़िद से,
सभी रो रहे हैं|
पापा मम्मी चिंता करके,
ओ भी रो रहे हैं|
इण्टर के बाद दीदी,
घर से ही बाहर हो
SSC मे जाॅब बा,
देके गई दिलासा हो|
चाह मेरी हम भी पढ़ले,
पैसा नाही घरे बा|
कब तक नोकरी मिली दीदी,
पुछे लोगवा सारा बा|
बैंक वाला नोटिस भेजे,
खेती क उधार बा |
भारी वर्षा पाला से,
खेती सब बेकार बा|
धान विकि कम भाव से,
सेठ से उधार बा|
माग न ,पैसा दीदी ,
ब्याज भारी लागत बा|
कइ साल बीत गये,
हुई हूं सयानी दीदी,
सोलह वर्षी छोटी बहना,
ओ भी है सयानी दीदी|
सुन के घटना रोवे,
बन्द कमरा करके ओ,
बार बार फैन देखे,
मन मे हत्या सुझे जो|
मन को समझा के कहती
हत्या समाधान ना,
बिना संघर्ष किये,
मिलता है मुकाम ना |
इलाहाबाद दिल्ली में,
कोटा क इ हाल है,
काउंटर 2 जाके पुछे,
क्या पार्ट टाइम जाॅब है|
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——- ऋषि कुमार “प्रभाकर”——-
बहुत सुंदर कविता और सुंदर अभिव्यक्ति
सुंदर
सुन्दर अभिव्यक्ति
वाह वाह