सरहद के पहरेदार
मीठी सी है वो हँसी तेरी, आँसू तेरा भी खा़रा है,
उन उम्र-दराज़ नज़रों का तू ही तो एक सहारा है।
मेंहंदी से सजी हथेली भी करती तुझको ही इशारा है,
कानों में गूँजी किलकारी ने पल-पल तुझे पुकारा है।
ये सारे बँधन छोड़ के तू ने रिश्ता एक निभाया है,
सरहद के पहरेदार तुझे पैगा़म सरहद से आया है।
जब-जब धरती माँ जलती है, संग-संग तू भी तो तपता है;
सर्द बर्फ़ के सन्नाटे में मीलों-मील भी चलता है।
दूर ज़मीं से, नील गगन में बेखौ़फ़ उड़ानें भरता है,
सागर की अल्हड़ लहरों से तू कितनी बातें करता है!
हर मौसम की तल्ख़ी को तू ने तो गले से लगाया है,
सरहद के पहरेदार तुझे पैग़ाम सरहद से आया है।
गुम नींदें हैं, आराम कहाँ, चैन भी कोसों दूर रहे
ग़ैरों की खातिर क्यों दूरी, तू अपनों से चुपचाप सहे?
दुश़्मन की गोली का किस्सा, वादी में बहता खून कहे,
पर तेरी कहानी हवाओं में क्यों गुमसुम हो खा़मोश बहे?
ये मुल्क कयों भूले बैठा है कि तू इसका सरमाया है,
सरहद के पहरेदार तुझे पैग़ाम सरहद से आया है।
इस मुल्क को तेरी याद आए, कुछ महीनों की तारीखों पर,
कुछ सोचा, कुछ लव्ज़ कहे, कुछ फूल रखे तस्वीरों पर।
क्यों पीछे खड़ी है तेरी ज़रूरत मतलब की फ़हरिस्तों पर?
जब तेरे लिए कुछ कर न सके, इल्ज़ाम लगा तकदीरों पर।
ये वही वतन है जिसने तुझको अक़्सर मुजरिम ठहराया है,
सरहद के पहरेदार तुझे पैग़ाम सरहद से आया है।
Waah
Thanks a lot
Super
Thanks
वाह बहुत सुंदर रचना ढेरों बधाइयां