“सहपाठी मिले “

फिर वही संगी हमारा फिर वही साथी मिले

हो जनम यदि पुनः तो, मुझे फिर वही सहपाठी मिले |

लड़ता ही रहता है वह हर समय हर मोड़ पर

संघर्ष में संग रहता सदर ,जाता न मुझको छोड़ कर |

हिम्मत -हौसले में है ,उसका तो शानी नहीं

एक सच्चा मित्र है वह ,चलता सबको जोड़कर |

उसका संग वैसे ही जैसे ,बृद्ध बृद्ध को लाठी मिले

हो जनम यदि पुनः ,तो मुझे फिर वही सहपाठी मिले ||

एक रिस्ता है जुड़ा वर्षों पुरानी दोस्ती का,

जिंदगी का एक रिस्ता होता जैसे जिंदगी का,

मीठी -मीठी बात जब तक मित्र से होती नहीं।

खाली खाली खुशियों का लगता है कोना जिंदगी,

प्यार में व्यवहार में फिर वही कद काठी मिले ,

हो जनम यदि पुनः ,तो मुझे फिर वही सहपाठी मिले ||

भोला भाला बन कर मुझको राह दिखलाता चले

जिंदगी है ,चलने वाला ,मीट यह भाता चले

समझ को भी लगे कि समझ समझाता चले

नदी को खुद में समेटे जैसे कोई घाटी चले

मित्रता की ‘मंगळ सदा चलती परिपाटी चले

हो जनम यदि पुनः ,तो मिले फिर वही सहपाठी मिले ||

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