साँझ इतनी मनोहर है
साँझ इतनी मनोहर है
गगन में सितारे हैं
धरा में भी सितारे हैं,
बड़े अद्भुत नजारे हैं,
खड़ा हूँ पर्वत की चोटी में
बने घर की छत पर,
बह रही है हवा ठंडी,
कभी है तेज फिर मंदी।
कटा सा चाँद आया है
मगर है चाँदनी सुन्दर,
बहुत शीतल है बाहर पर
भरा है ताप कुछ अन्दर।
साँझ इतनी मनोहर है
गगन में सितारे हैंकटा सा चाँद आया है
मगर है चाँदनी सुन्दर,
बहुत शीतल है बाहर पर
भरा है ताप कुछ अन्दर।
साँझ का बहुत ही सुंदर चित्रण प्रस्तुत करती हुई और मन के भावों को व्यक्त करती हुई कवि सतीश जी अद्भुत रचना, लाजवाब लेखन
गीता जी, आपकी लेखनी से समीक्षा पाकर मन अति प्रसन्न हुआ। आपका हार्दिक स्वागत है। जीवन संघर्ष है, कष्टों से उबर कर आई हैं आप। पुनः आपका स्वागत है।
🙏🙏
बहुत खूब, अति सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना
बहुत धन्यवाद