सागर और सरिता

सागर ने सरिता से पूछा,
क्यों भाग-भाग कर आती हो।
कितने जंगल वन-उपवन,
तुम लांघ-लांघ कर आती हो।
बस केवल खारा पानी हूं,
तुमको भी खारा कर दूं।
मीठे जल की तुम
मीठी सी सरिता,
क्यों लहराती आती हो।
नि:शब्द हो उठी सरिता,
उत्तर ना था उसके पास,
बोली तुम हो कुछ ख़ास।
ऐसा हुआ मुझे आभास,
विशाल ह्रदय है तुम्हारा।
फैली हैं दोनों बाहें
देख, हृदय हर्षित होता है।
आ जाती हूं पार कर के,
कठिन कंटीली राहें।।
____✍️गीता

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Responses

  1. बोली तुम हो कुछ ख़ास।
    ऐसा हुआ मुझे आभास,
    विशाल ह्रदय है तुम्हारा।
    फैली हैं दोनों बाहें
    देख, हृदय हर्षित होता है।
    आ जाती हूं पार कर के,
    कठिन कंटीली राहें।।
    —- वाह क्या बात है। आपकी कविता में अत्यंत गहरे भाव समाहित हैं। उत्तम शिल्प, खूबसूरत भाषा

    1. कविता की गहराई को समझने के लिए और इतनी सुंदर समीक्षा के जरिए उत्साहवर्धन करने हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी

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