सामने तो आ
शब्दों में नहीं तो खामोशी ही सही,
किसी ज़ुबां में तो तू निकल कर सामने आ,
कब तलक छुपता रहेगा तू राज़ अब दिल में,
खुल कर अब किसी सच सा तू निकल कर सामने आ,
खेल हैं कई और खिलौने भी बहुत हैं ज़माने में,
छोड़ कर बचपना तू अब हकीकत में निकल कर सामने आ॥
राही (अंजाना)
Bahut bha gai aapki raaz. Ko sajha Karne ki ada
ह्रदय से आभार भाई
Kaabil e Taareef
धन्यवाद् मित्र
Badiya Saxena Sab
धन्यवाद भाई
Welcome Bhai
सुन्दर रचना