सावन की लगन…

ऐसी लागी लगन
सावन की मुझे,
मैं तो घड़ी-घड़ी कविता
बनाने लगी..
कभी सोते हुए
कभी जगते हुए,
बेखयाली में कुछ
गुनगुनाने लगी..
गजलों में मगन,
नज्म़ों में मगन,
कल्पनाओं में दुनियां
बसाने लगी..
छोंड़ा मैंने उसे
प्यार करती थी जिसे,
सावन को मोहब्बत
जताने लगी..
ओ कवियों! मुझे
उन्माद तो नहीं,
बेवजह आज कल
मुस्कुराने लगी..

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Responses

  1. यूँ ही उत्साह में रह वो उगते हुए कवि
    कल तुझे सारा जहान रोशन करना है।
    बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ सृजित की हैं प्रज्ञा जी। जय हो, लेखनी यूँ ही निखरती रहे।

  2. सावन मंच के प्रति बेहद प्रेम को प्रकट करती ,बहुत सुंदर पंक्तियां
    बहुत अच्छे प्रज्ञा जी यहां पर लगभग सभी सदस्यों का यही हाल है, बहुत लगाव हो गया है सावन से ,जो यहां पर आता है इसी का हो जाता है।

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