सिर्फ़ बोझ न समझ मुझे
जीना चाहती हूं मैं भी
इस दुनिया को देखना चाहती हूं
मां तेरे आंचल में सर रखकर सोना चाहती हूं
बापू तेरी डाट फ़टकार प्यार पाना चाहती हूं
मां मैं तेरा ही हिस्सा हूं
तेरा अनकहा किस्सा हूं
तू मुझे अलग कर क्या जी पायेगी
इस दुनिया की भीड़ में तू भी अकेली पड़ जायेगी
इक मौका तो दे मुझे
बापू को अपने हाथ से रोटी बनाकर खिलाऊंगी
कक्षा में प्रथम आकर मैं सबको दिखलाऊंगी
बड़ी होकर जब अधिकारी बन घर आऊंगी
बापू के सर को मैं ऊंचा कर दिखलाऊंगी
जीना चाहती हूं मैं भी
इक मौका तो दे मुझे
सिर्फ़ बोझ न समझ मुझे|
Nice
bdhiya
सुंदर रचना
धन्यवाद
वाह बहुत सुंदर रचना
Good