सिफ़त माँ के मेरे बड़े साफ़ नज़र आते हैं
सिफ़त माँ के मेरे बड़े साफ़ नज़र आते हैं,
तामील दिलाने को मुझे जब वो खुद को भूल जाती है,
पहनाती है तन पर मेरे जिस पल कपड़े मुझे,
वो सर से खिसकता हुआ अपना पल्लू भूल जाती है,
बेशक मुमकिन ही नहीं एक पल जीना जिस जगह,
वहीं ख़्वाबों की एक लम्बी चादर बिछा के भूल जाती है।।
राही (अंजाना)
Asm post
Thank you
लाजवाब
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Welcome
Nice
वाह
बहुत सुंदर पंक्तियां