सिफ़त माँ के मेरे बड़े साफ़ नज़र आते हैं
सिफ़त माँ के मेरे बड़े साफ़ नज़र आते हैं,
तामील दिलाने को मुझे जब वो खुद को भूल जाती है,
पहनाती है तन पर मेरे जिस पल कपड़े मुझे,
वो सर से खिसकता हुआ अपना पल्लू भूल जाती है,
बेशक मुमकिन ही नहीं एक पल जीना जिस जगह,
वहीं ख़्वाबों की एक लम्बी चादर बिछा के भूल जाती है।।
राही (अंजाना)
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देव कुमार - June 14, 2018, 8:51 pm
Asm post
राही अंजाना - June 16, 2018, 2:43 pm
Thank you
Mithilesh Rai - June 15, 2018, 4:44 am
लाजवाब
राही अंजाना - June 16, 2018, 2:43 pm
Thank you
देव कुमार - June 18, 2018, 1:33 am
Welcome
Kanchan Dwivedi - March 8, 2020, 7:30 pm
Nice
Satish Pandey - July 31, 2020, 10:13 am
वाह
प्रतिमा चौधरी - September 8, 2020, 3:44 pm
बहुत सुंदर पंक्तियां