सुकून के पल कहां

तलाश करने जो चले
सुकून के पल
घूमकर आ गये वहीं
जहां से चले होके बेकल।
मन में भी सुकून नहीं
फिर ढूंढते फिरते कहां
जीवन पे ही छाया ग्रहण
छिनती सांसों की गिनती कहां
हर तरफ़ फैला है कैसा अनल
घूमकर आ गये वहीं
जहां से चले होके बेकल।
उम्मीद की किरण दिखती भी नहीं
जीने की ललक, थमती भी नहीं
परेशान हैं, परेशानी खलती भी नहीं
मृगतृष्णा सी फितरत जाने क्यूं है बनी
मरूद्दान‌ सी आश मन में सफल
घूमकर आ गये वहीं
जहां से चले होके बेकल।

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Responses

  1. बहुत सुंदर भाव है। शिल्प में सुधार अपेक्षित है। जहां से होके चले बेकल के स्थान पर
    जहां से होकर चले बेकल।

  2. सुकून की तलाश में आदमी पूरी जिंदगी बेचैन रहता है अंत में उसे सुकून वही आता है जहां से उसने सुकून तलाशने की कोशिश की थी बहुत खूब

  3. बहुत सुंदर चित्रण, सुमन जी:-

    भूत वर्तमान भविष्य से जुड़ा है जीवन
    पृथ्वी करती है इसका सजीव चित्रण
    वर्तमान गुजरने को है
    भूत बनने को हैं
    भविष्य भी कमर कस तैयार है
    वर्तमान बनने पर उसका उभार है
    गोल सा इक चक्र है धरा के जैसा
    यूं भी कह सकते हैं कि
    भूत ही भविष्य बन सामने तैयार है
    सबक सिखाने को प्रकृति तैयार है
    संतुलन बनाने वाले से ही इसे प्यार है
    गलती की सजा जब कोई पाता है
    सबक न लेकर बोल वहीं दुहराता है
    फिर सजा कठिन मिलती सह न पाता है

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