सूखे दरख्त रोते हैं क्यों
जहाँ सबसे पहले सूरज निकले
वहाँ खौफ का मरघट क्यों
जहाँ काबा -काशी एक धरा पर
उस माटी में दलदल क्यों
खून के आंसू रो रहे हैं
क्रांतिवीर बलिदानी क्यों
नेताओं की लोलुपता पर
सबको है हैरानी क्यों
नंगे सभी हमाम में दिखे
सबकी एक कहानी क्यों ||
गाँधी और सुभाष के सपने
जलते उबल रहे हैं क्यों
महंगाई बढ़ रही निरन्तर
बनी दुधारू गइया जनता क्यों
फर्क हम में और सूरज में कहाँ है
हमारी सहम सी विकल किरणें क्यों
देश में बनने वाली नीतियां
नतीजे में शून्य आती है क्यों
सवालात मन में है सबके
जवाब नहीं मिलता है क्यों ||
जिसे सुनकर नफ़रत पलती हो दिल में
ऐसी बातें रास आती है क्यों
स्वार्थ सिद्धि के लिये काटा वृक्षों को
सूखे दरख्त रोते है क्यों
भाई भाई राजनीति दलदल में
फिर भी दिखती है मारामारी क्यों
भूल विकाश की राहों में
बाँट चले जन जन कलिहारी क्यों ||
धुंआ उगल रहे हैं कारखाने
फैक्ट्रियां विष फेंक रही हैं क्यों
पृथ्वी भी अपनी आँखों से
मृत्यु का दृश्य देख रही है क्यों
मानवीय बुद्धिमतता ही अब
मूर्खता की परिचयक बन रही है क्यों
आतंकी रूपी पिशाचनी यहाँ
तांडव का अभिनायक हो रही है क्यों
‘प्रभात ‘ ऋषि मुनियों की इस धरती पर
नफ़रत भरा ये जंगल क्यों
जहाँ हर त्यौहार हो ईद दिवाली
उस नजर में नफ़रत क्यों
वैश्विक खगोलीकरण के दौर में
बेपर्दा हुई है नारी क्यों
इंसानों के दुःख दर्द में
हम बन न पाये सहभागी क्यों ||
बहुत खूब, सुन्दर अभिव्यक्ति
Thanks sir
बहुत खूब
Thanks sir
जहाँ सबसे पहले सूरज निकले
वहाँ खौफ का मरघट क्यों
जहाँ काबा -काशी एक धरा पर
उस माटी में दलदल क्यों
खून के आंसू रो रहे हैं..
बहुत ही कोमल भाव वा उच्चकोटि की रचना…
यूं ही लिखते रहें
Thanks ma’am