सूखे नहीं थे धार आंशु के, पड़ गए खेतों मे फिर सूखे
सूखे नहीं थे धार आंशु के
पड़ गए खेतों मे फिर सूखे
सूखे नहीं थे धार आंशु के
पड़ गए खेतों मे फिर सूखे
सूखे नहीं थे अरमान
आश के
फिर क्यू रूठा भगवान खवाब से
करता हूँ तुमसे निवेदन
इतना भी सितम न कर
रूठी है खाने की थाली
प्यालों मे भी कम है पानी
तू तो है सबका भाग्यभिधाता
मैं भी हूँ किसी का अन्नदाता
ले ले चाहे जो परीक्षा
आशा कभी न हारेंगे
सींच आशुओं से धरती को
फिर से धान उगाएँगे
सूखे भले हो खेत ये मेरे
हारा नहीं है होसला ये
मेरा
सूखे नहीं थे धार आंशु के
पड़ गए खेतों मे फिर सूखे
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-दिनेश कुमार-
अच्छा प्रयास दिनेशजी
thank you mam
Nice
Thank you.., i need more motivation..,
nice
Thank u bhai
BEHATREEN KOSHISH
thank you
बहुत सुंदर रचना
Gr8