सूल होत नवनीत देखि मेरे, मोहन के मुख जोग

जब कृष्णा को अक्रूर जी मथुरा ले जाते है, तो जशोदा मां कहती है,
“सूल होत नवनीत देखि मेरे, मोहन के मुख जोग|”

तब मां की सह्र्दयता अपने ममतामयी रूप में प्रस्तुत होती है| (सूरदास जी के शब्दों में माता यशोदा कह रहीं हैं- सखी!) यद्यपि लोग मेरे मन को समझाते हैं, तथापि मेरे मोहन के मुख योग्य मक्खन देखकर मुझे वेदना होती है। भला, कौन उसे सबेरे उठने पर बिना माँगे मक्खन और रोटी देगा और कौन मेरे उस कुँवर कन्हाई को क्षण-क्षण में गोद लेगा? पथिक! जाकर कहना कि तुम दोनों भाई बलराम और कृष्ण (अब) घर आ जाओ। हे श्यामसुन्दर! जिसके मेरे-जैसी माता है, वह क्यों दुःखी हो ?

जद्यपि मन समुझावत लोग ।
सूल होत नवनीत देखि मेरे, मोहन के मुख जोग ।।
प्रात काल उठि माखन-रोटी, को बिन माँगें दैहै।
को मेरे वा कान्ह कुँवर कौं, छिन-छिन अंकम लैहै।।
कहियौ पथिक जाइ, घर आवहु, राम-कृष्न दोउ भैया ।
सूर स्याम कित होत दुखारी, जिन कें मो-सौ मैया ।।

Related Articles

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

+

New Report

Close