सोच, नए साल की.!.!
क्या इस साल भी लड़ना है तुमको
धर्म और जाति के नाम पर
क्या इस साल भी लुटने देनी है
लड़की की इज़्जत नीलाम पर
क्या इस साल भी सोचा है तुमने
फिर से घोटाले करने की
क्या नहीं छोड़नी आदत वो गंदी
दूसरों की कामयाबी से जलने की
क्या इस साल भी तुमने सोचा है
मां बाप को अपने ठुकराने का
क्या इस साल भी तुमने सोचा है
घर की बहुओं को जलाने का
क्या इस साल भी तुमको करनी है
बेटी की हत्या गर्भ में
क्या अब और भी तुमको कहना है
कुछ मुझसे इस संदर्भ में
क्या इस साल नहीं ठुकराना है
तुम्हें यह अपने स्वार्थ को
क्या खुद को बड़ा समझना है
और नीचा उस परमार्थ को
क्यों इस साल नहीं सोचा तुमने
कोई नया लक्ष्य बनाने का
क्यों इस साल नहीं सोचा तुमने
धरती माता को बचाने का
यदि इस साल यही है सोचा तुमने
जलते दीपक को बुझाने का
यदि यही प्रतिज्ञा करनी है तुमको
माझी(दूसरो) की कश्ती डुबाने का
तो कोई नहीं है हक यह यारों
नए साल का जश्न मनाने का
नए साल का जश्न मनाने का.!.!.!.!
नववर्ष की शुभकामनाएं.!.!.!.!.!.!.!.!.!
रोहन चौहान………..
वाह बहुत सुंदर
Nice
बहुत उम्दा