स्वतंत्रता सेनानी “शहीद भगत सिंह”
कभी सुनाते थे बाबा बचपन में इक शहीद की अमर कहानी,
क्या था उनका बांका पन शानदार थी उनकी जवानी।।
बहते है जहाँ पाँच दरिया,
जन्म स्थली थी उसकी,
पंच आबों का राज्य पंजाब जन्मभूमि थी उसकी।।
सन 1919, दिन था बैसाखी का त्यौहार,
निर्दोष निहत्ते लोगों पर डायर ने गोलियों की करदी बौछार।।
दहला दिया छोटा सा मन,
उम्र उसकी थी 12 साल,
लहू से लथपत लाशें देख,
मन हुआ उसका बेहाल,
भगत सिंह ने मन मे ठाना,
अंग्रेजों को सबक सिखाना है।।
हम उम्र किशोरों के मन में आज़ादी का जोश जगाना है,
हमला गोरों पर करने को उसने मन में ठाना है।।
सर पर कफ़न बाँध कर निकला, युद्ध था उसका मौन मग़र,
कांकोरी पर रेल लूट ली,
अंग्रेजों पर ढाया कहर।।
चौरी चौरा कांड देखकर उनका मन था डोला,
खून सनी मिट्टी को मस्तक लगाकर बोला।।
अपने देश के लोगों की मौत का बदला लेंगें,
अंग्रेजों को हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगें।।
शादी की उम्र हो गयी करनी थी कुड़माई,
मना कर दिया ब्याह ना करूँगा आज़ादी पाने की सोंगध खाई।।
करली सगाई देश प्रेम से, मौत से ब्याह रचाया,
चूम लिया फंदे का रस्सा,
फाँसी को गले लगाया,
ऐसा था मेरा शहीद भगत ,
करता था बहकी बातें।।
माँ कहती पागल मत बनो,
घर में लाओ दुल्हन,
वह कहता था,
“जो ज़ख्म है सीने में फूलों के गुच्छे हैं,
पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे हैं”।।
बना योजना फेंक दिया बम्ब , असेंबली में कोहराम मचा,
डरकर भागे गोरे सारे,
उनके मन में हाहाकार मचा,
स्वेच्छा से गिरफ्तारी देदी
भगत और बटुकेश्वर ने,
हो गए भारत के शेर कैद,
लोहे की सलाखों में।।
जेल के अंदर रहकर भी,
वो वीर नहीं घबराए,
इंक़लाब जिंदाबाद के नारे थे लगाए।।
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चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह और सुखदेव का बंद कर दिया दान पानी, लेकिन वीरों ने हार न मानी।।
वीर सुपूत ने चूम लिया फाँसी का फंदा,
देश की ख़ातिर दे दी उन्होंने अपनी कुर्बानी।।
आओ उनको याद करें, झुक कर उनको करें सलाम,
ख़ुशनसीब थे वो लोग, जो देश के लिए आए काम।।।
जय हिंद!
वंदे मातरम!
-मेरी स्वरचित रचना
~Disha Malhotra.
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