हमको दीवाना कर गये
बाहर से आवाज आई
जब मैंने दरवाजा खोला
तो तुम थे…
तुम्हें सामने देखकर
थोड़ी शर्म आई
मैं रुकना चाहती थी
कुछ बोलना चाहती थी
तुम्हें छूकर महसूस करना चाहती थी
पर शर्माकर वहाँ से चली आई
सोंचा था थोड़ी देर ठहरोगे
तो एक बार और कर लूंगी तुम्हारा दीदार
पर तुम रुके नहीं चले गये
अपने साथ मेरा सुकून लेकर और
हमेशा की तरह हमको दीवाना कर गये…
अति सुंदर , बेहद जानदार और शानदार कविता👌
धन्यवाद
बहुत सुंदर लाजवाब कविता
Thanks
Very good
Thanks
चाहत रेशम की डोर है।
तभी तो आज बेचैनी है।।
Thanks amit ji
सुन्दर
Thanks
अतिसुंदर