हमारी धरती मां
गेंद जैसी गोल
धरोहर है अनमोल
थकती नहीं दिन रात सूरज के चक्कर लगाती है जीवो को अपने अंचल में बसाती है इसीलिए तो यह धरती माता कहलाती है
लेकिन कई दिनो से है यह बीमार
ऊपर से परमाणु परीक्षण उसके अस्तित्व को रहा है ललकार
ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण, वनो का संहार जैसे भयानक खतरे हैं तैयार
फिर भी वह देती है पुत्रों को उपहार
ममता दया दुलार
आओ सब मिल करे अपनी धरती मां का श्रंगार
आओ सब मिलकर करें धरती मां का श्रंगार,
सुंदर अभिव्यक्ति
सादर धन्यवाद
जीवो को अपने आंचल में बसाती है इसीलिए तो यह धरती माता कहलाती है ।सुंदर रचना
अतिसुंदर भाव पूर्ण रचना
कम शब्दों में बड़ी सच्चाई
कवि पाठकजी ने दर्शाई
बिल्कुल सही कहा