हम उस देश के वासी है ।।

हम उस देश के वासी है, जिस देश के घरेलु सकल उत्पाद कभी आकाश चुम रही थी ।
हम उस देश के वासी है, जिस देश की महानता का परचम कभी सारी विश्व में फैली थी ।
हम उस देश के वासी है , जिस देश में कभी स्वच्छ निर्मल गंगा बहती थी ।
हम उस देश के वासी है, जिस देश में कभी हिंसक नामक पशु समान कोई मानव न हुई थी ।
हम उस देश के वासी है, जिस देश के ग्रन्थों का अनुवाद परराष्ट्रों(दूसरे देश) के सभी भाषाओं में हुई है ।
हम उस देश के वासी है, जिस देश की धर्मव्यवस्था सभी धर्मों में सर्वोपरी है ।।
हम उस देश के वासी है, जिस देश की शिक्षा-व्यवस्था एक आर्दश चरित्र की निर्माण करती थी ।
हम उस देश के वासी है, जिस देश की अर्थ-व्यवस्था कभी आमजनता पे शोषण नहीं करती थी ।
हम उस देश के वासी है, जिस देश की कर-व्यवस्था कभी आयकर नाम की कोई कर नहीं लेती थी ।
हम उस देश के वासी है, जिस देश की काम-व्यवस्था सिर्फ संतानोप्ति के लिए ही सीमित थी ।
हम उस देश के वासी है, जिस देश की मोक्ष-व्यवस्था जादू-टोना पे न कभी निर्भर थी ।
आज देश की स्थिति क्या है, ये बात मुझसे नहीं कही जाती है ?
हमने मान-मर्यादा, सभ्यता-संस्कृति, भाषा, आहार, पोशाक, व्यवस्था, व अपनी सारी-की-सारी पहचान गँवायी है ।
अब किस आधार पे कहें हम उस देश के वासी है, जिस देश की व्यवस्था सभी व्यवस्थाओं में सर्वोपरी थी ।।
कवि विकास कुमार

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