हम किसान धरने पर
एक तो शीतलहर
दूजा बेगाना शहर।
फिर भी अटल रहेंगे
हम किसान धरने पर।।
हम क्यों माने हार बंधु
हम तो हैं अन्नदाता जग में।
पेट चले संग फैक्टरी चले
व्यापार पले अपनी पग में।।
मांग नहीं अपनी सोना है
ना मांगें हीरा-मोती हम।
अपनी फसल के घटे दाम
कभी न बर्दाश्त करेंगे हम।।
आलू होवे दो की अपनी
लेज बिके चालीस की।
अपना चिप्स बना खाऐंगे
मनो बात ख़ालिस की।।
विनयचंद ना दुखी रे
जिसका हम सब खाते हैं।
हट जा बादल नभ मंडल से
स्वर्ग लूटने हम आते हैं। ।
किसानों का दुःख व्यक्त करती हुई बहुत सुंदर और यथार्थ परक रचना
शुक्रिया बहिन
सौ प्रतिशत सही कहा आपने।
धन्यवाद
बहुत खूब
धन्यवाद
बहुत खूब, लाजवाब लेखन, सुन्दर कविता
धन्यवाद
सुन्दर