हम पलों का नहीं
हम पलों का नहीं
पलकों का हिसाब रखते हैं,
जिनको दुत्कारते सब
उनसे मिलाप रखते हैं।
जब कभी नींद नहीं आती है
रात भर करवटें सताती हैं,
तब लगा ध्यान, बन्द आंखों से
खुद का खुद से मिलाप करते हैं।
हम पलों का नहीं
पलकों का हिसाब रखते हैं,
जिनको दुत्कारते सब
उनसे मिलाप रखते हैं।
जब कभी नींद नहीं आती है
रात भर करवटें सताती हैं,
तब लगा ध्यान, बन्द आंखों से
खुद का खुद से मिलाप करते हैं।
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जिनको दुत्कारते हैं सब,
उनसे मिलाप रखते हैं,
बहुत बड़ी बात कह दिये सर आप ने
बहुत सुन्दर रचना
हर एक पंक्ति
बहुत सुन्दर ऋषि, आपकी यह टिप्पणी बहुत खूबसूरत है। धन्यवाद
बहुत ही ज्ञान वर्धक रचना है सतीश जी . कविता में बहुत ही गहराई है
ऐसी सुंदर सोच एक विद्वान व्यक्ति ही रख सकता है ।बहुत सुंदर रचना
इस प्रेरक टिप्पणी व समीक्षा हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद गीता जी, विद्वत टिप्पणी हेतु अभिवादन
अति सुन्दर प्रस्तुति दी है सर आपने
Wow very very nice
बहुत खूब
Nice line