हम बंधते ही रहे।

हम बंधते ही रहे,
कभी विचारों तो कभी,
दायरों के धागों से,
सिमट कर रही जिंदगी,
उसी चार कोनों के भीतर,
जन्म से आजतक,
बस दीवारों के रंग बदले,
और लोगो के चेहरे,
कभी इस घर की मान बनी,
कभी उस घर की लाज,
फिर भी बांधते ही रहे हमें,
कभी रिश्तों के धागों से,
कभी आंसुओ की डोर से।।।

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Responses

  1. गृहस्थ जीवन से जुड़ी ग्रहणी के दुखी जीवन या फिर नारी के केवल चारदीवारी तक सीमित दुखदाई जीवन को प्रस्तुत करती बहुत ही उम्दा कविता

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