Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Related Articles
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…
दायरे
दायरे ____ **** दायरे थे ही नहीं मानव की लालसा के! हर तरफ फैलाव था पैर पसारे। जीव सीमट रहे थे दायरो में…. लुप्त और…
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला
ये माटी के खातिर होगे, वीर नारायण बलिदानी जी। ये माटी के खातिर मिट गे , गुर बालक दास ज्ञानी जी॥ आज उही माटी ह…
गृहस्थ जीवन से जुड़ी ग्रहणी के दुखी जीवन या फिर नारी के केवल चारदीवारी तक सीमित दुखदाई जीवन को प्रस्तुत करती बहुत ही उम्दा कविता
बहुत बहुत आभार 🙏
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद मैम
बहुत सुन्दर तरीके से रिश्तों की बारीकियों पर नजर डाली गई है। बहुत खूब।
धन्यवाद सर
बिल्कुल सही गृहस्ती में ग्रहणी हमेशा बंधी ही तो रहती है👏👏
बहुत-बहुत आभार प्रिया जी
वाह बहुत सुंदर
धन्यवाद सर
Sunder
Thank you
nice
धन्यवाद