हम रचयिता हैं, हम कालिदास हैं…
यह साहित्य महज
चंद लेखनियों का गुलाम नहीं
हम जैसे कितने आएगे और कितने जाएगे
हर कवि जोड़ेगा एक पन्ना और
अनगिनत पाठक पढ़ते जाएगे
कुछ ऐसा लिखेंगे हम और
कुछ ऐसा कर जाएगे
जो साथ अधूरा ही छोंड़ गये
ऐसे इतिहास को मिटाते जाएगे
जोड़ेगे कुछ अध्याय हम
जीवन के इतिहास में
कुछ फेर बदल भी करते जाएगे
हम रचयिता हैं, हम कालिदास हैं
आने वाली पीढ़ी को कुछ बेहतर दे जाएगे…
हर कवि जोड़ेगा एक पन्ना और
अनगिनत पाठक पढ़ते जाएगे
कुछ ऐसा लिखेंगे हम और
कुछ ऐसा कर जाएगे
_________ बहुत खूब ,साहित्य पर कवि प्रज्ञा जी की बहुत सुंदर रचना ,भाव और शिल्प अति उत्तम
सुंदर आलोचना
धन्यवाद
बहुत सुंदर
धन्यवाद
काव्य को लेकर सुंदर व्याख्या की है कवि प्रज्ञा जी
धन्यवाद
अति उत्तम श्रेष्ठ रचना
धन्यवाद
सत्य कहा आपने
धन्यवाद
धन्यवाद
धन्यवाद