हम हार नहीं मानेंगे।
दुनिया पर आ पड़ी है विपदा भारी,
चारो ओर से घेरे हुए है भीषण महामारी।
चारो और संकटकाल का दौर है,
सुपरपावर भी बिल्कुल मजबूर है।
अर्थव्यवस्था का हाल बिल्कुल नीचे है,
जैसे कछुआ गाड़ी को खींचे है।
मजदूर मजबूर हो गया है,
मानो भाग्य ही रुष्ठ हो गया है।
प्रवासी पैदल ही अपनों के पास निकल गए,
भूखे प्यासे इस सफर में पैरो में छाले पड़ गए।
गाड़ी घोड़े, काम धंधे सब बंद से हो गए,
गद्दी पर बैठने वाले ठैला चलाने को मजबूर
हो गए।
मानो चारो और प्रलय छा रहा है,
जल भी भीषण तांडव मचा रहा है।
कुछ दुष्ट लोग स्थिति नहीं समझ पाते है,
बच्चो की रोटी छोड़,शराब की बॉटल घर ले आते है।
आमदनी गर्त में समा रही खर्च बड़ता जा रहा ,
सभी नर नारियों पर भयंकर संकट का दौर छा रहा।
मगर संकटों से सदा लड़ना प्रभु तुमने सिखलाया था,
घोर संकट में भी तुमने तो विशाल समुद्र पर सेतु बनाया था।
घनघोर अंधियारों में भी तुमने कर्म का सूर्य दिखाया ,
चिंतन में फंसे हुए अर्जुन को गीता का ज्ञान पड़ाया।
घनानंद के आगे क्या चाणक्य ने हार मानी ,
विकराल चुनौतियों से लड़कर चन्द्रगुप्त को अखंड
भारत की कमान संभाली।
बड़ी बड़ी सेनाओं के आगे डरकर हम रुके नहीं,
कटवा दिए भले ही मस्तक पर हम कभी झुके नहीं।
सदा से हम पीठ में खंजर खाते रहे,
मगर फिर भी हंसता हुआ चेहरा लेकर आगे जाते रहे।
अमेरिकी प्रतिबंधों को हमने आईना दिखलाया था,
हर मुश्किल से लड़कर भारत को परमाणु संपन्न बनाया था।
भारत की बेटी ने असंभव को संभव करके दिखाया था,
ज्योति ने पिता को बारह सौ किलोमीटर साईकिल
से पहुंचाया था।
चाहे भूत कहूं या वर्तमान हमारा,
मुश्किलों से लड़ना ही है काम हमारा।
हम मां भारती के बेटे बेटी कभी परिस्थिति से
ना भागे ना कभी भागेंगे,
जब तक शरीर में अंतिम श्वास बाकी है हम हार
नहीं मानेगें ।।
✍️✍️मयंक व्यास✍️✍️
सुंदर
समसायिक रचना। बहुत सुंदर
यथार्थ परक, अति सुन्दर प्रस्तुति
बहुत खूब
👌👌
धन्यवाद🙏🙏