हर ख़ुशी तेरे नाम हो चुकी है
ठंडक बढ़ रही है लगातार
केवल तेरा अहसास
गला रहा है
जिंदगी में जमी बर्फ को,
सर्द हवाएं
नाजुक गालों से टकराकर
अपने पैरों के निशान छोड़ रही है
काले काले टिपके जैसे निशान,
मेरी पूरी खुली परत
श्याम हो चुकी है ,
तू पहचान नहीं पायेगा लेकिन
हर ख़ुशी तेरे नाम हो चुकी है,
मेरे चेहरे की झुर्रियों को
अब नजर नहीं लगेगी समय की
झुर्री झुर्री तेरे नाम पर
बदनाम हो चुकी है,
ठंडक ने ओढ़ने पर मजबूर कर दिया है
तन की कालिमा
छिप कर गुमनाम हो चुकी है,
………………… डा. सतीश चन्द्र पाण्डेय , चम्पावत
Very very nice poem
बहुत खूब
सुंदर कल्पना
वाह