हाइकु -2
रोते हो अब
काश। पकड पाते
जाता समय।
अँधेरा हुआ
ढल गई है शाम
यौवन की।
रात मिलेगा
प्रियतम मुझको
चांद जलेगा।
आ जाओ तुम
एक दूजे मैं मिल
हो जाएं ग़ुम।
पहाड़ी बस्ती
अंधेरे सागर में
छोटी सी कश्ती।
आंखें हैं नम
अपनो से हैं अब
आशाये कम।
रिश्ता है कैसा
सुख में हैं अपने
मक्कारों जैसा।
Nice
वाह
👌👌
Good
Bahut khoob