हाय मैं सड़क बेचारी
मैं सड़क बेचारी
ज्यों अबला नारी।
पग पग दलित
परम दुखियारी।। हाय मैं सड़क बेचारी
काट दिया कोई कहीं पर
और बहा दिया पानी घर का।
भोजन के दोनें और छिलके
सब फेंक रहे मेरे ऊपर आ।।
चले बटोही नाक बन्द कर
थूके और देकर कुछ गारी।। हाय मैं सड़क बेचारी……
गंदे लोग गंदी प्रशासन
कमर टूट गई जिसके कारण।।
आखिर कहाँ गुहार लगाऊँ
मैं नहीं जाती दफ्तर सरकारी।। हाय मैं सड़क बेचारी…
जीर्णोद्धार होगा पुनर्निर्माण होगा
हो जाएगी अब मेरी काया पलट।
योजनाएं बनी कागज पर
और हो गई मेरी कुछ काटम- कट।।
निर्माणाधीन हीं बीत गए
कुछ मास वर्ष दो – चारी।। हाय मैं सड़क बेचारी….
ठेकेदार अभियन्ता आफिसर
दे लेके एक राग अलापे।
हमने तो कर निर्माण दिया था
टूट गए सब बाढ़ के ढाहे।।
‘विनयचंद ‘ अब मान भी जाओ
है फरमान सरकारी।। हाय मैं सड़क बेचारी…..
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Geeta kumari - January 4, 2021, 7:18 pm
वाह ,कवि ने सड़क का बहुत ही सुन्दर तरीके से नारी रूप में मानवीकरण किया है । अति सुन्दर और सटीक रचना
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - January 4, 2021, 7:32 pm
शुक्रिया बहिन भाव को सुंदर तरीके से समझने के लिए। हार्दिक धन्यवाद
Geeta kumari - January 4, 2021, 7:19 pm
“Poetry on picture contest” में द्वितीय पुरस्कार की बधाई हो भाई जी
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - January 4, 2021, 7:33 pm
शुक्रिया ये आपकी समालोचना का प्रभाव है।
Geeta kumari - January 4, 2021, 7:39 pm
🙏🙏
Satish Pandey - January 4, 2021, 7:37 pm
काव्य प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त करने पर शास्त्री जी को बहुत बहुत बधाई, आशा है कि इसी तरह आपकी लेखनी का रसास्वादन हमें प्राप्त होता रहेगा।
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - January 4, 2021, 8:57 pm
हार्दिक धन्यवाद
आपकी सुंदर समीक्षा का हीं प्रतिफल है
Rahul Kumar - January 5, 2021, 6:04 pm
बहुत खूब पंडित जी
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - January 6, 2021, 9:27 pm
धन्यवाद