ग़ज़ल

वो ख़्वाब; वो ख़याल, वो अफ़साने क्या हुए ।
सब पूछते हैं लोग; वो दीवाने क्या हुए ॥

अपनों से जो अज़ीज़ थे आधे—अधूरे लोग ।
‘पहचान’ दी जिन्होंने; वो ‘बेगाने’ क्या हुए ॥

किसने चुरा ली ‘धूप’ तुम्हारी ‘मुंडेर’ की ।
मिलने की वो कसक; वो पैमाने क्या हुए ॥

क्यूँ; आग निगाहों की, लग रही बुझी—बुझी ।
जलवा—ए—हुस्न क्या हुआ; परवाने क्या हुए ॥

दरवाज़े सारे बंद हैं; चुप के मकान के ।
लबरेज़ शोखियों के; वो ठिकाने क्या हुए ॥

हम तो सफ़र में थे; चलो, बे-घर नसीब था ।
तुम्हारे हसीन चाँद से; आशियाने क्या हुए ॥

तुमसे वो दिलकशी—वो हँसी; रूठ गई क्यों ।
ऐसे ‘गुनाह’ सोचो तो; अनजाने क्या हुए ॥

खाई थी ये कसम जहां; न होंगे हम ज़ुदा ।
चश्मदीद वफ़ा के; वो बुत—ख़ाने क्या हुए ॥

यादों का तेरी; सीने में, ‘जंगल दहाड़ता है’ ।
अहसास की नाज़ुक कली—याराने क्या हुए ॥

काटी थीं हमने ‘हिज़्र’ की; रातें जहां कई ।
‘अनुपम’ जरा कहो तो; वो ‘मैख़ाने’ क्या हुए ॥
#anupamtripathi #anupamtripathiG
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