ग़ज़ल

 

तेरा — मेरा इश्क पुराना लगता है ।
दुश्मन हमको फिर भी जमाना लगता है ॥

गुलशन – गुलशन खुशबू तेरी साँसों की ।
मौसम भी तेरा ही दीवाना लगता है ॥

पर्वत – पर्वत तेरा यौवन बिखरा है ।
हद से गुजरना कितना सुहाना लगता है ॥

इन्द्र – धनुष का बनना – बिगड़ना तेवर तेरे ।
मस्त निगाहों का छलका पैमाना लगता है ॥

गुजरी हयात का मैं भी इक अफ़साना हूँ ।
सब कहते हैं ……. मर्ज़ पुराना लगता है ॥

सांझ — सिंदूरी सूरज का घर तज़ आई ।
चाँद निकलना एक बहाना लगता है ॥

‘अनुपम’ आसां दर्द का दरिया पीते जाना ।
उनको भुलाने में एक जमाना लगता है ॥
: अनुपम त्रिपाठी
#anupamtripathi #anupamtripathiG
*********_________*********

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

ग़ज़ल

ज़िंदगी को इस—–तरह से जी लिया । एक प्याला-–फिर; ज़हर का पी लिया ॥ वक़्त के सारे  ‘थ…पे…ड़े’  सह लिए । गम जो बरपा, इन…

Responses

+

New Report

Close