Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Ravikant Raut
A writer , A Poet , A Blogger , Real Life and Macro Photographer , Hobby-Chef , and Abstract Thinker
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चल पड़ा फिर जिस्म
चल पड़ा फिर जिस्म किसी राह में मन को छोड़ अकेला क्यों नहीं चलते दोनों साथ -साथ कोई रंजिश नहीं फिर भी रंजिश फूल की…
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ग़ज़ल
२१२२ १२१२ २२ अपने ही क़ौल से मुकर जाऊँ । इससे बेहतर है खुद में (खुद ही) मर जाऊँ ।। तू मेरी रूह की हिफ़ाजत…
कोई कोना जिस्म का
कोई कोना जिस्म का उड़ के बैठा किसी कोने में अब सफर साँसों का गुजरता है कभी जिस्म में कभी, किसी कोने में राजेश’अरमान’
जिस्म में सहम गया
कतरा कतरा लहूँ का जिस्म में सहम गया चलो इसी बहाने रगों में बहने का वहम गया वो कोई हिस्सा था मेरे ही जिस्म का…
kya baat hai…
Thanks
nice one sir..
Thanks dear
वाह बहुत सुंदर