आलम
मुहब्बत के नश्तर मिटाने वाले,
तुझे क्या पता है चाहत ए आलम।
तू ने कभी मुहब्बत 💘की ही नहीं,
तू क्या समझे मेरे दर्द ए आलम।।
मुहब्बत के नश्तर मिटाने वाले,
तुझे क्या पता है चाहत ए आलम।
तू ने कभी मुहब्बत 💘की ही नहीं,
तू क्या समझे मेरे दर्द ए आलम।।
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नश्तर का अर्थ तीक्ष्ण कटाने वाले वस्तु (जैसे चाकू) होता है
फ़िर ‘मुहब्बत के नश्तर मिटाने वाले’ का अर्थ क्या हुआ?
अर्थ तो हम सभी बता सकते हैं पर भावार्थ तो अमित जी हीं बता, सकते हैं।
हमने मुहब्बत को नश्तर पे रखा है। क्योंकि यही नश्तर
न जाने कितने को गला घोंट दिया। जो जीता नश्तर के
धार पर चल कर जीता। जो नहीं जीता वह सारे जहाँ
से गया। हमने मुहब्बत को लोहपट्टी संबोधित करके ही
जमाने के सामने फरियाद किया है।
वाह
Nice
ओह