क़हर
एक तरफ कर्ज तो दूसरी तरफ महामारी करोना।
कैसे जिये हम यही कहता है आज सारा ज़माना।।
कमाते है हम तब ही दो वक्त की रोटी मिलती है।
न काम है न पैसा है अगर है तो करोना का डर है।।
स्कूल कालेज सब बंद हुए शिक्षक विद्यार्थी मारे गये।
अनेक बच्चों के भविष्य बन कर भी आज बिगड़ गए।।
कोरोना बीमारी पर यथार्थ चित्रण ।
लेकिन सर शिक्षक और विद्यार्थी मारे नहीं गए हैं ऑनलाइन क्लासेज़ में बिज़ी हैं
गीता बहन अँनलाइन अध्ययन गरीब के बच्चे कहाँ पढ़ पाते है। आज हमारे देश के हर गाँव में अँनलाइन के अंतर्गत अध्ययन कितनी कारगर है। हम और आप अच्छी तरह से जानते है।मोबाइल से पढ़ने के लिए कम से कम बच्चों को व अभिभावक को मोबाइल के अच्छे नाँलेज होना भी जरुरी है। जो निरक्षर है वह जिनका जीवन गाँव में ही बीत गया वे सभी अपने बच्चो को पढ़ाए तो कैसे पढ़ाए ?
जी ये तो सोचनीय स्थिति है।
वास्तविक स्थिति का चित्रण
धन्यवाद सर।
बेहतरीन
शुक्रिया पंडित जी।
आपकी बात और भावना दोनों से सहमत हूँ मैं सर
गरीबों के पास सिलेंडर भराने के पैसे नहीं होते तो फोन और नेट रीचार्ज के पैसे कहां से होंगे ?
आज के समय में घर की दाल रोटी चलाने में भी मिडिल क्लास के पसीने छूट रहे हैं
फिर यह सब अफोर्ड कर पाना हर फैमिली के लिए संभव नहीं है…
उम्दा अभिव्यक्ति और सत्य पर आधारित रचना
👌👌👌👏
आपकी सोच मेरी कविता को और मजबूत कर दिया। फिर से मैं आपको दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ।
धन्यवाद आपका