Site icon Saavan

क्या नारी तेरी यही कहानी ?

युग युग से तू ,आंसू बहाती आई
पुरुष के अधीन तू, सदा रहती आई
अपने घर, अपने बच्चो के लिए
युग युग से तू ,मर मिटती आई
क्या नारी तेरी यही कहानी ?
आंचल में दूध है, आंखों में पानी
अपनो ने ही ,तुझ पे बनायी नयी कहानी
खुद दलदल में फंस के,अपनो को आज़ाद किया
एहसान के बदले में, अपनो ने तुझे क्या दिया
क्या नारी तेरी यही कहानी ?
इस युग में भी, तू पुरुष से कम नहीं
जब कि, संसार तुझ से ही बना पुरुष से नहीं
झुका दिया है ,आज तुमने अंबर को
सब कुछ पा के भी, अपनायी विवशता को
क्या नारी तेरी यही कहानी ?
आज घर घर में ,तू ही घर की मुखिया है
फिर भी पुरुष के आगे, तेरी क्या औकात है
दुःख सह के भी ,अपनो को सुख देती रही
अपनी सिंदूर को सदा,अपना सुहागन समझती रही
क्या नारी तेरी यही कहानी ?

Exit mobile version