काश,कश लेते ही धुँआ हो गया जानेमन

December 17, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

काश,कश लेते ही धुँआ हो गया जानेमन
सोचते ही रह गए किस सोच में जानेमन
तुमने तो पल में बोझा फेक दिया
उलझनों से सुलह न हुई
सुलझे कहा तुम जानेमन
काश,कश लेते ही धुँआ हो गया जानेमन

तुमने सोचा था गुम होगें नही गुमराह होगें
तुमने सोचा तक हो सके तो आज़ाद होगें
दिमाग कहा से कहा तूम वही पर मगर
फिर सवालो की पोटली फेक
कटपुतली बन गए न जानेमन
काश,कश लेते ही धुँआ हो गया जानेमन

तुम हो जो ज़िंदा तो काश न कहना
कश लगा बन काफ़िर या मसीहा
फिर न होगा ये सब दिखे है मगर
तुझे तो बस अपना फितूर दिखे
परवाह करे न तू करा कर जानेमन
काश,कश लेते ही धुँआ हो गया जानेमन

ज़ोर दे कर कहु गोर से देखु मैं
है मंज़िल ये या गुमाह में हूँ मैं
फलसफा है इक यहाँ का कोई
देखोगे “आशीष” जितना गहराई में
आगाज़ भूल जाओगे डूब जाओगे जानेमन
काश,काश लेते ही धुँआ हो गया जानेमन

लोग कहते हैं हमसे कोई काम ना

December 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

लोग कहते हैं उनसे कोई काम न हुआ

थोड़ा जो कुछ हुआ काम बस नाम का हुआ

यू तो मुझको ऐतबार था उस पर कभी

मगर फिर कुछ यूं हुआ कि वह ऐतबार ना हुआ

अगर कुछ कर लो तो कहते हैं इसमें क्या बड़ी बात है

कुछ ना कर पाओ तो कहते हैं ‘आशीष’ तुमसे यह भी ना हुआ

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