हम वो पागल प्रेमी हैं जो मातृभूमि पर मरते हैं ।

July 1, 2020 in Poetry on Picture Contest

न पायल पर, न काजल पर
न पुष्प वेणी पर मरते हैं
हम वो पागल प्रेमी हैं
जो मातृभूमि पर मरते हैं ।

सियाचिन की ठंड में हम
मुस्तैद है बन इमारत माँ
सरहद की रेत पर हमने
लहू से लिखा भारत माँ

हमें डिगा दे हमें डरा दे
कहाँ है हिम्मत बिजली की
नहीं चाह है फुलवारी की
नहीं तमन्ना तितली की

नहीं गुलाब , केसर ,चम्पा
हम नाग फनी पर मरते हैं
हम वो पागल प्रेमी हैं
जो मातृभूमि पर मरते हैं ।

हम तो वो रंगरसिया हैं
जो खेले होली खून -खून
हरी -हरी चूनर माँ की
देकर स्वेद बूंद -बूंद

पीठ दिखाकर नहीं भागते
सिर कटाकर मिलते हैं
देख हमारी वर्दी पर
ज़ख्म वफ़ा के मिलते हैं

जहां तिरंगे के रंग तैरे
उस त्रिवेणी पर मरते हैं
हम वो पागल प्रेमी हैं
जो मातृभूमि पर मरते हैं ।

रचनाकर :- गौतम कुमार सागर , ( 7903199459 )

ग़ज़ल

July 25, 2016 in ग़ज़ल

उपर चढ़ते , नीचे जाते
ईमान खरीदे बेचे जाते
~
ए सी कमरों में बैठ कर
क्या क्या नहीं सोचे जाते
~
सियासत का पहला पाठ
पाँव कैसे खींचे जाते
~
किरदार पे कैसा भी हो दाग
पैसों से सब पोंछे जाते
~
सच बोलने वालों के तो
सरे राह मुँह नोचे जाते
~
स्कूल भेजना बंद किया
जेल तभी तो बच्चे जाते
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रचानकार :- गौतम कुमार सागर

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