by Kishan

सूक्ष्म पल के कण

March 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ तुम सुनाओ
कुछ मैं सुनाऊँ
कुछ तुम कहो
कुछ मैं कहूँ
चुरा कर कुछ पल तन्हाईयों से
खेलें आँख-मिचौनी
कुछ तुम गुनगुनाओ
कुछ मैं गुनगुनाऊँ
गूँज उठेगी शहनाईयाँ
मन के झर्झर खंडहरों में
फिर हटाकर मैला पल्लू
बयाँ करेंगी
अपने उत्थान-पतन की दास्तान
सांझ ढलने को है
दिनकर भी मध्यम हुआ जाता
तिमिर झांकती झरोखे से
श्यामल आँचल की छाया तले
आओ समेट लें
तन्हाईयों के इन सूक्ष्म कणों को
ये धरोहर हैं रहस्य्मय भविष्य के
इतिहास के पन्नों से
निकलकर फिर मिलेंगे
कुछ नूतन तन्हाईयों के संग
खुलेंगे फिर कुछ राज़
हमारे अतीत के

by Kishan

आहिस्ता-आहिस्ता रखना कदम

March 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आहिस्ता-आहिस्ता रखना कदम
इन नाजुक पगडंडियों में
वक्त सो रहा है
रात के सन्नाटे में
चांदनी रात के आँचल तले
खोया है कांच के सपनों की दुनिया में
तुम्हारे क़दमों की इक आहट से
कहीं बिखर न जाये
उसकी कांच के सपनों की दुनिया
आहिस्ता-आहिस्ता रखना कदम
कांच का कोई खवाब टूट न जाये
तन्हाई के आगोश में उड़ने दो
स्वेत कांच के टुकड़ों को
हवा के इक नन्हे झोंके से
कांच के ये टुकड़े जब टकराते हैं
जैसे पायल कोई झूम उठी
आहिस्ता-आहिस्ता रखना कदम

by Kishan

बता तो सही तू है कौन

March 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी बनकर कोई ख़्वाब
मेरी निंदिया तू चुरा लेता
कभी बनकर हवा का झोंका
आँचल को तू खींच लेता
बता तो सही तू है कौन
कभी बारिश की बूँद बनकर
कोमल बदन को भिगो देता
कभी शबनम बनकर
पावों को शीतल कर देता
बता तो सही तू है कौन
कभी झरना बनकर
प्रेम रस है बरसाता
कभी बन नदिया कि धारा
गीत कोई गुनगुनाता
बता तो सही तू है कौन
कभी घटाओं की ओट लेकर
मेरे यौवन को निहारता
कभी सूरज की किरण बन
खिड़की से मुझे झांकता
बता तो सही तू है कौन
कभी हिम कण बन
कोमल गालों को चूम लेता
कभी रसिक भंवरा बन
अधरों का मधुरस चूस लेता
बता तो सही तू है कौन
सफ़ेद कांच के टुकड़ों में
सिमट गई दुनिया मेरी
न जाने किस आहट से
बिखरी गयी दुनिया मेरी
बता तो सही तू है कौन

by Kishan

हिमालय के उतुंग शिखर से

March 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिमालय के उतुंग शिखर से
सिंह ने भरी ऊँची दहाड़ है
तूफान क्या टकराएगा उससे
जो स्वयं फौलादी पहाड़ है
सारे जहाँ में अब भगवा ही लहराएगा
माटी का लाल अब तिरंगा फहराएगा
सौगंध इस लाल ने खाई है
भारत की पवित्र माटी की
फिर से लौट आएगी महक
हरी-भरी कश्मीर घाटी की
सारे जहाँ में अब भगवा ही लहराएगा
माटी का लाल अब तिरंगा फहराएगा
इस कर्मयोगी का साहस देख
सारा ब्रह्माण्ड भी शरमाया है
उसके कुशल नेतृत्व ने आज
साडी दुनिया को भरमाया है
सारे जहाँ में अब भगवा ही लहराएगा
माटी का लाल अब तिरंगा फहराएगा
कर्मपथ से भटक जाये कभी
इस सिपाही का ये धर्म नहीं
अपने कर्तव्य से विमुख होना
माँ ने सिखाया ऐसा कर्म नहीं
सारे जहाँ में अब भगवा ही लहराएगा
माटी का लाल अब तिरंगा फहराएगा
निकल पड़ा है लेकर प्रतिज्ञा
इस माटी का क़र्ज़ चुकाऊंगा
झुकने न दूंगा माथा इसका
लहू देकर हर फ़र्ज़ निभाउंगा
सारे जहाँ में अब भगवा ही लहराएगा
माटी का लाल अब तिरंगा फहराएगा
धरती से अंतरिक्ष तक आज
भारत एक चमकता तारा है
दुश्मन ने जब आँख दिखाई
घर में घुसकर उसको मारा है
सारे जहाँ में अब भगवा ही लहराएगा
माटी का लाल अब तिरंगा फहराएगा
बनकर सारथी समर भूमि में
हर युवा को इसने जगाया है
तरकश के अभेद्य तीरों से
आतंक का किया सफाया है
सारे जहाँ में अब भगवा ही लहराएगा
माटी का लाल अब तिरंगा फहराएगा
वक्त कम मगर सफ़र लम्बा है
रुकना नहीं बस चलते जाना है
आज का सूरज ढलने से पहले
हर हाल में लक्ष्य को पाना है
सारे जहाँ में अब भगवा ही लहराएगा
माटी का लाल अब तिरंगा फहराएगा

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