चार दीवारे और इक छत

January 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी

चार दीवारे और इक छत, इत्ता सा था घर मेरा

चार दीवारे और इक छत, इत्ता सा था घर मेरा
भूखी जमीन आज उसे भी निगल गयी

कुछ लफ़्ज़ ठहरा रखे हैं कागज पर

October 24, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ लफ़्ज़ ठहरा रखे हैं कागज पर
क्या पता कभी कोई कविता बन जायें
कुछ दिनों को भी जोड रखा है
शायद कहीं ये भी कभी जिंदगी बन जायें

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