Praduman Amit
चाहत
September 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी
सोचा था अपनी मुकद्दर को एक नया नज्म देंगे।
उन्हीं नज्म के आर में हम उनकी दास्तां लिखेंगे।।
दीवाना
September 25, 2020 in शेर-ओ-शायरी
दिन गुजर गए महीने गुजर गए साल गुजर गए।
किसी की चाहत में, हम खुद को ही भूल गए।।
लेखक की गरीबी (२)
September 25, 2020 in लघुकथा
आपने पहले अंक में पढ़ा — जीवनबाबु के घर में अन्न के एक दाना तक नहीं है। रुपा एक भारतीय नारी की परंपरा पर चलने वाली है। वह अपने पति को भूखे पेट सोने देना नहीं चाहती है। जीवनबाबु के कहने पर रुपा दिलचंद बनिया के पास उधार राशन लाने के लिए चल पड़ती है। जबकि पिछला हिसाब भी चुकता नहीं हो पाया है… (अब आगे)
कुछ देर बाद रुपा दिलचंद बनिया के दूकान पर पहुंच गई।
दिलचंद रुपा को देखते ही कहा –“आओ भाभी। इतनी रात को इस गरीब की याद कैसे आ गयी “।रुपा — “भैया। मुझको उन्होंने भेजा है। घर में अन्न के एक दाना तक नहीं है। उनको आज दिन भर दाना तक नसीब नहीं हुआ है। मुझे कुछ राशन उधार चाहिए ।मै अपने पति को भूखे पेट कैसे सोने दूं”।दिलचंद –“भाभी। मैं आजकल उधार देना बंद कर दिया है। जो ले के जाता है फिर वापस नहीं आता है। अब आप ही कहिए उधार मैं कैसे दूँ “।रुपा दिलचंद की बातें सुन कर असमंजस में पड़ गई। अब वह करे तो क्या करे। कुछ क्षण पश्चात दिलचंद इधर उधर देख कर रुपा को अपने पास बुलाया और कहा — “एक बात कहूं? गर बुरा न मानो तो “।रुपा — “कहिए। दिलचंद — “भाभी। तुम अपने पति के पेट की आग बुझाना चाहती हो। मैं अपनी आग तुम से बुझाना चाहता हूँ। क्यों न हम दोनों मिल कर ऐसे चलें कि, सांप भी मर जाए और लाठी भी बच जाए “।इतना सुनते ही रुपा की पांव तले की ज़मीन खिसक गयी।
बुत बन कर खड़ी ही रही। एक तरफ पति के पेट की आग तो दूसरे तरफ दिलचंद बनिया के हवस की आग। वह करे भी तो क्या करे। दस मिनट के बाद रुपा दिलचंद की शर्तें मान लेती है। दिलचंद खुश हो कर राशन तौला और उसे देते हुए कहा — “कब आओगी”? रुपा –“मैं उनको खाना खिलाकर पहुंच जाउंगी “।दिलचंद –“जरा जल्द आना। समाज से जरा बच के आना ।नहीं तो मेरी नाक कट जाएगी। घर में दो बेटियाँ भी जवान है। उन लोगों को पता लग गया तो अनर्थ हो जाएगा”। रुपा चुपचाप वहां से घर के तरफ चल पड़ी। रुपा अपनी आँखों में आँसू ले कर घर पहुंची। राशन के थैला देखते ही जीवनबाबु ने कहा –“देखा रुपा। दिलचंद बनिया हमें कितना इज्जत करता है। बेचारा बहुत ही नेक इन्सान है “।रुपा कुछ न कहती हुई रसोई के कमरे में जा कर खाना बनाने में व्यस्त हो गई। मगर आंसू की धार रुकने का नाम नहीं ले रहा था। कुछ देर गुजरने के बाद रुपा उनके पास आई और कही — “चलिए खाना तैयार है। जीवनबाबु के संग रुपा भी मन मार कर दो तीन निवाला मुंह में रख ली। फिर दोनो विस्तर पड़ गए। रुपा जीवनबाबु के सिन्हें से लग कर रोने लगी। रुपा दिलचंद की सारी बातें अपने पति को कह दी। जीवनबाबु बहुत देर तक चुप रहे। अंत में अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा –‘क्या तुम दिलचंद की शर्तें मान चुकी हो ” ?(शेष अगले अंक में)
सिखे कहाँ से
September 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी
दिल ले के दर्द देना, यह अदा सिखे कहाँ से।
बताइए न यह राज़,आपने ने सिखे कहाँ से।।
लेखक की गरीबी
September 23, 2020 in लघुकथा
जीवनबाबु अपने मोहल्ले में प्रतिष्ठत व्यक्ति थे। वह एक साहित्यकार भी थे। हमेशा किसी न किसी पत्र व पत्रिकाओं के लिए रचनाएं तैयार करते थे। उनकी पत्नी रुपा इतनी सुंदर थी कि वह कभी कभार अपनी पत्नी को ही देख कर कविता, गीत व ग़ज़ल रच लिया करते थे। कमी थी तो केवल अर्थ व्यवस्था की। वह अपना घर परिवार चलाने के लिए प्राइवेट कोचिंग व स्कूल में पढ़ाया करते थे। तब कहीं जा कर दो वक्त की रोटी जुटा पाते थे। कभी कभार किसी न किसी पत्र व पत्रिकाओं के माध्यम से दो तीन सौ रुपये का मनीअर्डर भी आ जाया करता था। एक दिन शाम के समय रुपा घर के चौखट पर बैठ कर रो रही थी। समय यही कोई सात बज रहा था। जीवनबाबु कहीं से पढ़ा कर घर लौटे। रुपा को रोते देख कर पूछ बैठे — “क्या हुआ रुपा? रो क्यों रही हो? किसी ने कुछ कहा क्या? “रुपा उनके सूखे होंठ देख कर समझ गई ,शायद उन्हें दिन भर दाना नसीब नहीं हुआ है। वह एक भारतीय नारी है। भला अपने पति को भूखे पेट कैसे सोने देगी। घर में अन्न के एक दाना तक नहीं है। रुपा — “आज घर में अन्न के एक दाना तक नहीं है। मैं आपके लिए खाना क्या बनाउंगी। मैं आपको भूखे पेट कैसे सोने दूंगी। यही सोच मुझे रोने पर मजबूर कर दिया है “।जीवनबाबु — “इतनी मेहनत करने के उपरांत भी हम अन्न के लिए तरस रहे है।क्या हमने तक़दीर पाई है”।रुपा – “मोहल्ले में शायद ही कोई ऐसा घर बचा होगा जिस घर से मैं आटा या चावल न लायी हूँ “। दिलचंद बनिया के पिछला हिसाब भी चुकता नहीं हो पाया है “।जीवनबाबु — “हिम्मत न हारो रुपा। आज नहीं तो कल अवश्य ही हमारी तकदीर बदलेगी। दुःख सुख तो इन्सान के जीवन में आता जाता ही रहता है। नाजुक परिस्थिति में इंसान को घबड़ाना नहीं चाहिए। सुख को सभी गले लगाते हैं मगर दुःख को कोई बिरले ही गले लगाते है । रात के नौ बज रहे है। एक काम करो गी “?
रुपा — “क्या ।जीवनबाबु ” तुम दिलचंद बनिया के यहाँ जाओ। वह तुम्हें राशन उधार दे देगा ।मेरा नाम कह देना “।रुपा –“नहीं नहीं मै नहीं जाउंगी। आप ही चले जाइये न “।जीवनबाबु -“मैं आज तक दिलचंद बनिया के दूकान पर कभी नहीं गया।लेन देन के हिसाब भी हमेशा तुम ही करती आई हो। मुझे वहां जाना कुछ अच्छा नहीं लगेगा “।जीवनबाबु के लाख समझाने पर रुपा दिलचंद बनिया के दूकान पर जाने के लिए तैयार हुई। रात के यही कोई दस या सवा दस का वक्त था। मोहल्ले के सारे लोग खा पी कर बिस्तर पर लेट कर इधर उधर के बातों में मशगूल थे। माघ का महीना था। चारो तरफ कोहरा ही कोहरा था। रुपा अपनी पुरानी शाल से अपने को ढंकती हुई दिलचंद बनिया के दूकान के तरफ चली जा रही थी। (शेष अगले अंक में)
पागल आशिक़
September 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी
लोग कहने लगे है, हम इश्क़ में पागल हो गए है।
मैं कहता हूँ इश्क़ में पागल तो कोई कोई होते है।।
शाहजहाँ भी मुमताज़ के लिए ही पागल हो गया।
इसलिए आगरा में मुमताज़ महल प्रसिद्ध हो गया।।
झूम झूम के…..
September 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी
हमने उड़ते हुए बादल से पूछा कब तुम्हें बरसना है।
उसने कहा नादान यह भी कोई पूछने की बात है ।।
सभी को वफा के आशियाना तो एक मर्तबा बनाने दो।
फिर देखना कैसे हम आँखों से झूम झूम के बरसते है।।
मुझे पसंद नहीं है
September 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी
हम उस राह से गुजरना नहीं चाहते,
जिस राह में खड़े हो जाए दिल्लगी।
कह दो पागल आशिक़ दीवानो से,
मुझे पसंद नहीं है किसी की आवारगी।।
अपना पराया
September 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी
तुम से दूर रह कर भी, हमने अब जीना सिख लिया है।
कौन है अपना कौन है पराया, हमने यह देख लिया है।।
ए भी कोई मुहब्बत है
September 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी
वो जवानी ही क्या जिस जवानी में कोई कहानी ही न हो।
वो मुहब्बत मुहब्बत ही नहीं जिसमें कोई अश्क ही न हो।।
ईशारा
September 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी
आज फिर फलक से सितारे जमीं पर आने लगे है।
शायद उनका ईशारा होगा जो मेरा एक अंदाज़ है।।
घूंघरू की आवाज़
September 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी
फिर वही, कहीं से आयी घूंघरू की आवाज़।
दिल को लुभा रही है, फिर वही पुरानी साज।।
बाद में पता चला…..
September 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी
सोचा रहा था मैं, इश्क़ है बेदाम की।
बाद में पता चला, इश्क़ है बड़े काम की।।
शेर व ग़ज़ल
September 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी
कहीं हीर की टोली तो कहीं रांझे की टोली।
अंजुमन में गूंज उठा शेर व ग़ज़ल की बोली।।
वाह!!
September 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी
जब वो अपनी स्याह भरी गेसूओं को
अपनी अंदाज से संवारने लगी।
खुदा की कसम तब वादियों के
नियत भी धीरे धीरे बदलने लगी।।
उनके शहर में
September 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी
क्या करूंगा “अमित “जा के उनके शहर में।
वफा के बदले मिला बेवफ़ाई उनके शहर में।।
तक़दीर और तदबीर
September 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी
जब तक़दीर से दोस्ती की, तब तदबीर ने मुझ से कहा।
मुझे मत छोड़ ए नादान गर मैं नहीं तो तकदीर कहाँ।।
फिर क्यों न…..
September 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी
माना कि मुकद्दर पे जोर चलता नहीं किसी का।
फिर क्यों न मेहनत से ही दोस्ती कर लिया जाए।।
वक्त और तक़दीर
September 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी
वक्त को हमने वक्त की तरह बड़ी मेहनत से कदर किया।
तभी तो आज मैं अपनी तक़दीर को अपने वश में किया।।
यही दोस्ती यही प्यार ?
September 17, 2020 in शेर-ओ-शायरी
रास्ते कठिन है प्यार के, फिर भी मैने हिम्मत नहीं हारा।
तुम तो थोड़े ही दूर चल के कहने लगे अब मैं जीवन से हारा।।
बिन बरसात के ही….
September 17, 2020 in शेर-ओ-शायरी
इश्क़ क्या करे हम, वो कहते है इसके पास दिल ही नहीं है।
उन्हें क्या पता कभी कभी बिन बरसात के ही हम भीग जाते है।।
कहीं पे दिल तो कहीं पे निशाना
September 17, 2020 in शेर-ओ-शायरी
हम इतने भी नादान नहीं थे, जितना की वो मुझे समझते थे।
कस्मे वादे मुझ से करते थे, इश्क़ जनाब कहीं और फरमाते थे।।
ए कैसा इश्क़ है ??
September 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी
।। आवारा से क्या पूछना इश्क़ किसे कहते हैं।।
।। हवस के नजरों से देखना भी क्या इश्क़ है।।
इश्क़ में रिश्क़
September 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी
चल हट जा !! नहीं करना है मुझे इश्क़ विश्क़
मैं बर्बाद होता गया ले ले के इश्क़ में रिश्क़।।
ग़म की दवा
September 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मय से मैने पूछा ग़म की दवा है क्या आपके मयख़ाने में।
मय कहा किस ग़म की दवा चाहिए आपको मयख़ाने मे।
किसी को किसी से….
September 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी
कौन किस पे कुर्बान होता है इस ज़माने में।
कोई वास्ता ही नहीं है यहाँ किसी को किसी से ।।
आज हमारी टक्कर है
September 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी
लड़का – मैं वो आशिक़ नहीं जो अपनी,
फ़ितरत को धूल में मिला दे।
गर यकीन न हो तो एक मर्तबा,
दिल दे के तू मुझे अपना बना ले।।
💇 — अपना दिल ए पागल आशिक़,
तुझे ऐसे कैसे हवाले कर दूँ ।
लाख जतन से संभाला यौवन को,
बदल जाता है तू कैसे यकीन कर लूँ।।
लड़का – तेरा यौवन किस काम का जो किसी,
आशिक़ के कांतिल निगाह न पड़े।
लाख बचा ले तू अपना दामन,
फिर भी दीवानो से तू कैसे बचे।।
💇 ——तेरे जैसे कई आशिक़ आ कर चले गए,
मेरे हुस्न की आग ही कुछ ऐसी है।
तू मुझ पे क्या जादू चलाएगा,
तेरा ईमान ही बेईमान है।।
लड़का —मेरे ईमान पे नश्तर चलाने वाली,
कम से कम खुदा से तो डर।
माना कि ज़माने की डोर तेरे हाथों में हैं,
फुर्सत से बनाने वाले से तो डर।।
💇 —–हम कब नहीं थे तुम्हारे ए नादान,
तू हर मर्तबा छलने का काम ही किया।
गर तू करता है मुझ से सच्ची मुहब्बत,
जा क्या याद करेगा, यह शाम तेरे नाम किया।।
धोखा ही धोखा
September 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी
यहाँ धोखा वहाँ धोखा, चारो तरफ धोखा ही धोखा है।
कैसे कोई इश्क़ करे इसलिए हमने फैसला बदल दिया है।।
एग्रीमेंट
September 14, 2020 in शेर-ओ-शायरी
बालू के रेत में हमने आशियाना बनाया
समंदर से कोरे कागज पे एग्रीमेंट करके ।
अचानक अमित ने कहा ए पागल आशिक़
लहरों पे यकीन करना जरा सोच समझ के ।।
इन्सान और जानवर (भाग – २)
September 13, 2020 in लघुकथा
(आपने भाग १ में पढ़ा – वीराने में कलूआ की मुलाकात एक अदभुत गिद्ध से होता है। वह मनुष्य की भाषा में बात करता है। वह अपने घर परिवार व समाज को छोड़ चूका है। क्योंकि सभी गिद्ध जानवर के मांस खा खा कर जानवरों जेसे बर्ताव करने लगे है। गिद्ध स्वंय अपनी आहार तालाश करने मे सक्षम नहीं है।वह इंसान के मांस खा कर जीवित रहना चाहता है। वह अपनी व्यथा कलूआ को कहता है ।कलूआ क्या जवाब देता है) अब आगे —
कलूआ –“हे गिद्ध राज। मैं अवश्य आपकी मदद करूंगा। मैं अभी आपके लिए श्मशान से इन्सान के मांस ले आता हूँ। आप प्रतीक्षा करें। कुछ देर बाद कलूआ श्मशान से एक अधजली लाश ला कर उसके सामने रख दिया। गिद्ध लाश को देखते ही कहा – ” भाई। मुझे इन्सान के मांस चाहिए, जानवर के नहीं ” ।कलूआ निराश हो गया। कलूआ श्मशान से इसी तरह से चार पाँच मर्तबा अधजली लाश लाता रहा , मगर गिद्ध सभी लाश को जानवर के लाश कह कर कलूआ को निराश करता रहा ।कलूआ — “क्षमा हो गिद्ध राज। मै आपकी समक्ष इन्सान के मांस ही लाया हूँ। जानवर के नहीं। गिद्ध — ” शायद तुम्हें इन्सान और जानवर में फर्क नहीं मालूम “। कलूआ – ” मैं समझा नहीं गिद्ध राज। आप कहना क्या चाहते हैं “। गिद्ध — ” तुम यहाँ जितने भी लाशें लाए हो, सब अपने जीवन काल में इन्सान तो थे मगर व्यवहार जानवरों जैसा था । ए सभी गरीबों के खून चूस कर स्वार्थ की रोटी सेकने के ही कार्य किया। इन्सान हो कर भी अपने से कमजोरों पर जानवर जैसे बर्ताव करते थे। परायी बहू बेटी को हमेशा हवस के नजरों से तौलते थे। ए सभी धर्म की आर में अधर्म के घिनौने खेल खेलते थे। यहाँ तक कि मन्दिर मस्जिद को भी नही छोड़ा”। कलूआ –“हे गिद्धराज।इस संसार में हर कोई कुछ न कुछ जरूर पाप किया है। आपके कहे अनुसार इतना नेक इन्सान इस भ्रष्टयुग में मिलना बहुत ही मुश्किल है “। गिद्ध — ” मैं भूखा मरना पसंद करूंगा लेकिन जानवरों के मांस खाना पसंद नहीं करूंगा। यह मेरी प्रण है। कलूआ वहां से चुपचाप अपने घर के तरफ चल पड़ा।
इन्सान और जानवर
September 12, 2020 in लघुकथा
कलूआ डोम श्मशान से लाश जला कर शाम के समय घर जा रहा था। अचानक किसी की आवाज़ उसके कानो में टकरायी।वह खड़ा हो कर चारो तरफ देखने लगा। उसे कहीं भी कुछ दिखाई नहीं दिया। कुछ क्षण पश्चात वह दो कदम आगे बढा ही था कि झाड़ी में एक बूढ़े गिद्ध को देखा। कलूआ –“सारा दिन मांस खाता ही रहता है। फिर भी शाम के समय टें टें करता ही र हता है “।गिद्ध–“भाई। मैं चार दिनों से भूखा हूँ। मुझे कहीं से भी इन्सान के मांस ला सकते हो? तुम्हारा अहसान मैं कभी नहीं भुलूंगा “।कलूआ इतना सुनते ही अचरज में पड़ गया। वह सोचने लगा एक गिद्ध मनुष्य की भाषा कैसे बोल सकता है। वह डर गया। दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा — “हे अदभुत रहस्य। आप कौन है “।गिद्ध –‘ मैं समस्त गिद्धों के राजा हूँ। मेरे जाति के सभी गिद्ध जानवर के मांस खा खा कर जानवरों जेसे बर्ताव करने लगे है।मैं अन्य गिद्धों की तरह जानवर के मांस खाना नहीं चाहता हूँ। मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। मैं अपना घर संसार व समाज को छोड़ चूका हूँ। अब इस बूढ़े शरीर में इतनी ताक़त नहीं कि मैं अपनी आहार स्वयं तालाश कर सकुं। क्या तुम मेरी मदद करोगे ? ”
शेष अगले अंक में
मुहब्बत को बदनाम न करो
September 11, 2020 in ग़ज़ल
सुनो ए दोस्त तुम ए काम न किया करो।
मुहब्बत को यों बदनाम न किया करो।।
माना कि रास्ते बहुत कठिन है इश्क के।
फिर भी अपनी इश्क़ पे यकीन किया करो।।
जो हर मर्तबा खोता है वही शख्स पाता है।
बस थोड़ा सा इन्तजार की घड़ियाँ गिना करो।।
ए क्या पल में पागलपन पल में ही मयख़ाना।
खुदा के लिए तुम ऐसा पागलपन न किया करो।।
ऐसा साथी
September 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मुझको संभाल कर वो खुद गिर गए।
ऐसा साथी सब को कहाँ मिल पाए।।
यह क्या हो गया
September 10, 2020 in मुक्तक
यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ नकाब ही नकाब है।
यह कैसा मातम आज शायरो पे आया है।।
ना नज्म है ना ग़ज़ल है ना नातशरीफ है।
मौसम भी कुछ कुछ शायरों से ख़फा है।।
गुलशन में भी गुल खिलना भूल गया है ।
ए नकाब इतनी कयामत भी अच्छी नहीं है।।
घर घर की यही कहानी
September 9, 2020 in मुक्तक
दिन रात घर घर की यही कहानी है।
सास बहू के झगड़े युग युगांतर पुरानी है।।
सास की कड़वी – बोली मैं तुमसे कम नहीं कलमुंही।
बहू की कड़वी जबाब – तू ही जहर की पुरिया है।।
सास उठाए झाडू तो बहू उठाए बेलन।
यही दो अस्त्र की चर्चे घर में है आँगन में है।।
यही दकियानूसी विचार हर घर को बर्बाद किया।
नफ़रत की चिंगारी इधर भी है उधर भी है।।
काश !! सास समझ पाती मैं भी कभी बहू थी।
काश !! बहू भी समझ पाती माँ के बदले सासु माँ है।।
बेचारा – पति महोदय भी घबड़ाए अब मैं क्या करुं।
एक तरफ माँ है दूसरी तरफ अर्धांगिनी है।।
कहे कवि – जो पुरूष इन दोनों पे काबू पा लिया।
समझो उसके ही घर में खुशियों के बरसात है।।
देखे जरा
September 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी
चलो जरा इश्क़ करके देखे,
किसमें कितना है दम ।
सुनता हूँ जिसको डस ले ,
उसको निकल जाता है दम ।।
बेख़बर
September 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी
जनवरी से दिसंबर गुजर गए,
उस बेख़बर को खबर ही नहीं।
उसे क्या पता इश्क़ करने वाला
कोई आशिक़ ज़िंदा है भी या नहीं।।
ख्वाईश
September 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी
दिल के आगरे में मैं भी एक ताजमहल बनाउंगा।
पत्थर ना सही संगदिल से ही महल को सजाउंगा।।
बीते कल
September 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी
हम उनमें थे — वो मुझमें थे, उफ़ !!!! , वो क्या दिन थे।
जब हम रुठ जाते थे, तब वो चाँद सितारे तोड़ लाते थे।।
पुरानी हवेली
September 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी
कई वर्षों से इस पुरानी हवेली में कोई आया ही नहीं।
जो भी आया मैं गैर समझ कर उसे अपनाया ही नहीं।।
गम
September 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी
वफा के बदले उनके शहर में”अमित”बेवफ़ाई ही मिला।
चलो गम को भुलाने के लिए मयख़ाने में मय तो मिला।।
कामयाब आशिक़
September 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी
ए दोस्त —- जो इश्क़ में बदनाम होते है।
दरअसल वही आशिक़ कामयाब होते है।।
नादान आशिक़
September 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी
झील में उतरने से पहले काश मैं गहराई को नाप लेता।
अब दलदल में फंसता जा रहा हूँ काश कोई बचा लेता।।
बद से बदनाम
September 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी
हम उनके लिए “मीर”, बद से बदनाम होते गए।
वो नादान मुझे इम्तहान पे इम्तहान लेते गए।।
अभिलाषा
September 4, 2020 in शेर-ओ-शायरी
प्रेम नगरी में मैने प्रेमा से पूछा प्रेम के क्या है परिभाषा। शर्माती हुई कही “ए अजनबी क्या है तेरा अभिलाषा”।।
खुदा के लिए
September 4, 2020 in शेर-ओ-शायरी
मत आना मेरे मैयत में ,
अश्क समंदर बन जाएंगे ।
डर है क़यामत के ए नूरी,
कब्र भी मुझे ताने ही देंगे।।
अरमान
September 3, 2020 in शेर-ओ-शायरी
जब तुम गेसूओं में गुलाब गूंथते थे।
तब मेरे अरमान के फूल खिलते थे।।
तुझको हवाले
September 3, 2020 in शेर-ओ-शायरी
पत्थर पे लकीर, खींचने वाले।
खुद को किया, तुझको हवाले।।
संवार दे तू , या बर्बाद कर दे।
जो भी दे, हंस हंस के दे।