Pratap Narayan Singh
कुछ सामयिक दोहे
June 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
देश बना बाज़ार अब, चारो ओर दुकान
राशन है मँहगा यहाँ, सस्ता है ईमान
राजा- रानी तो गए, गया न उनका मंत्र
मतपेटी तक ही सदा, रहा प्रजा का तंत्र
सर्वाहारी क्यों इसे, बना दिया भगवान ?
ज़र,जमीन,पशु-खाद्य तक, खा जाता इंसान
गंगाएँ कितनी बहीं, ‘बुधिया’ रहा अतृप्त
जब जब है सूखा पड़ा, नेता सारे तृप्त
बापू , तुम लटके रहो, दीवारों को थाम
नमन तुम्हें कर नित्य हम, करते ‘अपना काम’
राम-नाम
June 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
डूब वहाँ, मोती जहाँ, कंकड़ मत तू छान
सुख-माणिक का सिंधु बस, राम नाम ही जान
“मैं”, “मेरा” ही जगत में, सब कष्टों का मूल
“तू”, “तेरा” वह मंत्र जो, काटे कष्ट समूल
माया वह अंधी गली, ओर छोर न होय
राम-नाम दीपक बिना, पार भया ना कोय
राम- नाम से सिद्धि है , राम नाम ही युक्ति
राम नाम में प्राप्ति है, राम नाम ही मुक्ति
क्रोध, लोभ, दुर्भावना, सारे दुःख के द्वार
राम नाम का जाप ही, सुख का है भण्डार
आया तो था जगत में, बिल्कुल खाली हाथ
राम-नाम-धन जोड़ ले , जाएगा जो साथ
भजता जो प्रभु नाम को, पाता सुख समृद्धि
दमन इन्द्रियों का करे, मिल जावे है सिद्धि
राम-नाम चिंतन करें, मन में रख विश्वास
ईश-कृपा हो जायगी, मन में रक्खो आस
राम नाम जप यज्ञ से, तन मन होय पवित्र
हिय जागे अनुराग अति, रिपु बन जाए मित्र
प्रभू नाम का जाप ही, है जीवन का सत्य
माया, अर्थ, घमंड तो भंगुर और असत्य