Raj Bairwa (मुसाफ़िर)
शीर्षक – यादों का पिटारा….!!
November 20, 2017 in Other
लम्हे बचें जो जिंदगी के वो खुल के काट लें,
जो बाकी रह जाए पिटारे में उसे आपस में बांट लें,
वो नीले समंदर के किनारे,
पिघले मोती से अंगारे,
चल ख्वाहिशों की मुट्ठी में बांध लें,
वो रंगीन लम्हे जिंदादिल के सारे,
खुशी की चादर ओढ़े पलकों की बाहों में थाम ले,
धूप छांव के खेल निराले,
कुछ अपनी किस्मत के छाले,
अपनी प्रेम की वर्षा कर जिंदगी को जिंदगी का नाम दें,
लम्हे बचें जो जिंदगी के वो खुल के काट लें,
जो बाकी रह जाए पिटारे में उसे आपस में बांट लें…!!!
– राज बैरवा’मुसाफिर’
एक शहर….!!
November 20, 2017 in Other
रास्ताें से गुजरते हुए ईक शहर नजर आया,
जिससे उढते धुएँ में इंसानियत का रिसता खुन नज़र आया,
हँसते हुए चेहराे में, खुद को झूठा साबित करता हर इंसान जाे पाया,
तब कहीं जाकर हमें भी कलयुग की रामलीला का सार समझ आया,
रास्ताें से गुजरते हुए ईक शहर नजर आया….!!
कुछ आेर आगे बडे, ताे खंडर हुईं ईमारताें का मलबा था,
कहीं दुआ दबी थी , कहीं काेई शिकायत, कहीं ममता बिखरी पड़ी थी,
ताे कहीं साेने की ईंटों के नीचे दबा लाचार ईश्वर चिखता पाया,
रास्ताें से गुजरते हुए ईक शहर नजर आया….!!!
-राज बैरवा’मुसाफिर’