Satish Pandey
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Satish Pandey wrote a new post, कुछ भी कह देना सरल है 4 days, 2 hours ago
दगा करना सरल है
वफ़ा करना कठिन है
गिराना सरल है किसी को
उठाना कठिन है।
दिल जोड़ लेना और
अपना बोल लेना सरल है,
निभाना कठिन है।
कुछ भी कह देना सरल है
कर पाना कठिन है,
चाँद तोड़कर लाने की
बात करना […] -
Satish Pandey commented on the post, मेरे पापा 4 days, 3 hours ago
“तो मैं आपका बच्चा था
अब मैं बड़ा हुआ हूं तो,
अब आप मेरा बच्चा हो
यह कहकर पापा से गले लगा,
अब मुझे सुकून सा मिलने लगा”
——- कवि गीता जी की बहुत ही लाजवाब औऱ सुन्दर रचना है। उच्चस्तरीय भाव, सरल व प्रवाहपूर्ण भाषा। बहुत खूब -
Satish Pandey commented on the post, रिक्शा 4 days, 3 hours ago
उसका नित सत्कार करो।
उसका भी एक परिवार है
,सेवक बन आधार बनो।।बहुत सुन्दर पंक्तियाँ। यथार्थ से आदर्श की ओर जाती बेहतरीन रचना।
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Satish Pandey commented on the post, *भोर वाले मित्र* 4 days, 3 hours ago
कवि गीता जी ने अभिधागत लक्षणा के माध्यम से हास्य का पुट देकर प्रेरणात्मक शैली में इस कविता की रचना की है। कवि के विषय और व्यंग्य शैली दोनों में ताजगी हैं। बहुत सुंदर काव्य रचना।
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Satish Pandey commented on the post, मानव जनम न बेकार करो 4 days, 3 hours ago
“कर्मशील बन रोजगार करो।
दीनन हित परोपकार करो।।
मानव जनम न बेकार करो।
‘विनयचंद’ भव पार करो।।”
कवि शास्त्री जी की बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ और उम्दा कविता है यह, यह कविता प्रेरणात्मक काव्य-बोध का निरंतर विस्तार करने में सक्षम है। -
Satish Pandey wrote a new post, पूँजी तेरे खेल निराले 4 days, 3 hours ago
पूँजी तेरे खेल निराले
जिसकी जेब में भर जाती है
उसका संसार बदल जाती है,
धीरे-धीरे आकर तू
मानव व्यवहार बदल जाती है।
दम्भ, दर्प, मद, गर्व आदि
संगी साथी ले आती है।
तेरे आने से मानव की
आंखों में पट्टी बंध ज […]-
Very nice, wow
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सत्य वचन
सुन्दर रचना -
Atisunder kavita
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“कोई मेहनत कर के भी दो रोटी नहीं कमा पाता है
कोई बिना किये कुछ भी खातों को भरता जाता है।”
कवि सतीश जी की यह कविता जीवन की सच्चाईयों को बयान करती है ।अपने आस पास बहुत लोग ऐसे होते हैं जो काम मेहनत में भी भरपूर धन पाते हैं,और कुछ लोग बहुत मेहनत करके भी है कम ही कमा पाते हैं।….लेकिन हम सब सुख धन से ही उठा पाएं,ये जरूरी नहीं है
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Satish Pandey wrote a new post, क्यों इस तरह हो रूठे 4 days, 15 hours ago
बातें बताओ खुल कर
क्यों इस तरह हो रूठे
कहते थे प्यार दूँगा
अब बन गए हो झूठे।
बिन बात मुँह फुलाकर
चुपचाप क्यों हो बैठे,
क्या कह दिया है हमने
जो इस तरह हो ऐंठे।
लगता है पड़ गए हैं
कुछ नफ़रतों के छींटे, […]-
“आशा थी जिन फलों से
वे बन रहे हैं खट्टे
छोड़ो ये राह आओ
दो बोल बोलो मीठे।” बहुत ही सुंदर भाव। अतिसुंदर रचना।। -
बहुत सुंदर प्रेमाभिव्यक्ति करती हुई कवि सतीश जी की अत्यंत सरस पंक्तियां, …….. “बिन बात मुँह फुलाकर चुपचाप क्यों हो बैठे,
क्या कह दिया है हमने जो इस तरह हो ऐंठे। “अपने साथी को मनाती हुई बहुत सुन्दर कविता । सुन्दर भावाभिव्यक्ति
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Satish Pandey commented on the post, हिन्दी का समुचित विकास कैसे हो? 5 days, 2 hours ago
हिंदी दिवस पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के विचारों को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत करने हेतु शास्त्री जी को धन्यवाद
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Satish Pandey commented on the post, विश्व पटल पर हिंदी चमके 5 days, 3 hours ago
युवा कवि ऋषि जी, आपकी यह बहुत सुंदर रचना है। इसमें यथार्थ और आदर्श का बेहतरीन तालमेल है। मातृभाषा हिंदी के सम्बंध में बहुत सरस और सटीक पंक्तियाँ लिखी हैं आपने। बहुत खूब, लेखनी की यह निरंतरता बनी रहे। यूं ही रोज लिखें, निखरते रहें।
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Satish Pandey wrote a new post, घमंड तेरा शत्रु है 5 days, 3 hours ago
घमंड तेरा शत्रु है
उसे कभी न पास रख
तेरा करेगा अवनयन
उसे कभी न पास रख।
घमंड से कटेंगे तेरे
मित्र और दोस्त सब,
घमंड लील जायेगा ये
आत्मीय भाव सब।
तू शिखर को चूम ले
गगन की यात्राएं कर
मगर न भूल म […] -
Satish Pandey commented on the post, प्रवासी भारतीय 5 days, 3 hours ago
प्रवासी भारतीय दिवस पर कवि गीता जी की यह बेहतरीन रचना है। भाषा सरल है और अपने प्रभाव से पाठक तक आसानी से भाव सम्प्रेषण करने में सक्षम है। अपनी इस अभिव्यक्ति में कवि ने पलायन से जुड़ी गहरी संवेदना को प्रकट किया है।
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Satish Pandey commented on the post, *विश्व हिन्दी दिवस* 5 days, 4 hours ago
हिन्दी दिवस पर आपने बहुत सुन्दर रचना की है गीता जी।
हिन्दी मेरे भावों की जननी,
हिन्दी में चले मेरी लेखनी
हिन्दी में मेरा गर्व छिपा,
हिन्दी में छिपा मेरा गौरव।
बहुत भी लाजवाब पंक्तियाँ हैं। बहुत सुंदर कविता की सृष्टि हुई है। -
Satish Pandey commented on the post, शायरी 5 days, 5 hours ago
कवि शास्त्री जी आपकी यह शायरी अति उत्तम भाव संजोये हुए है। बहुत खूब
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Satish Pandey wrote a new post, बोलो उसकी क्या गलती थी 5 days, 13 hours ago
तुम्हारी नादानी थी
बोलो उसकी क्या गलती थी
वो पेट में खेला करती थी,
बाहर आकर दुनिया देखूंगी
मन में सोचा करती थी।
वो कलिका अपने जीने के
सपने देखा करती थी,
तुम से मम्मा कहने को
मन ही मन आतुर […] -
Satish Pandey wrote a new post, ठेके का रिक्शा खींच दिन भर 5 days, 16 hours ago
आ बैठ जा
मैं गीत लिख दूँ आज तुझ पर
है उपेक्षित तू सदा से
ठण्ड की रातों में
सोता है खुली ठंडी सड़क पर।
ठेके का रिक्शा खींच दिन भर
जो कमाता है उसे
भेजता है गांव में परिवार को,
रोज खपता है भले
रविवार हो शन […]-
बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है आपने
“शक्ति को पूरी खपाकर
मंजिलें देता पथिक को,
सब यही कहते हैं कम कर
कोई नहीं देता अधिक तो।”
बहुत ही सुंदर और विचारणीय पंक्ति है पाण्डेयजी। अतिसुंदर भाव पूर्ण रचना। -
बहुत खूब
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अति सुन्दर रचना
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“आ बैठ जा
मैं गीत लिख दूँ आज तुझ पर है उपेक्षित तू सदा से
ठण्ड की रातों में सोता है खुली ठंडी सड़क पर।
ठेके का रिक्शा खींच दिन भर”
एक रिक्शा चालक पर इतनी करुणा और दया दिखलाती हुई कवि सतीश जी की बहुत ही मार्मिक और भावुक अभिव्यक्ति वाली बहुत सुंदर कविता। गरीबों के लिए हृदय में दया भावना उत्पन्न करने वाली बहुत ही उत्तम प्रस्तुति
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Satish Pandey commented on the post, जाड़ा का मौसम 5 days, 16 hours ago
बाल कवि पुनीत ने ठंडक के मौसम में बनने वाले व्यंजनों , फल-फूल एवं खाद्य पदार्थों पर लेखनी चलाकर यह कविता प्रस्तुत की है जो कि बहुत ही सुंदर और सराहनीय है। यूँ ही निरंतर लेखनी चलती रहे। खूब आगे बढ़ें। बहुत सुंदर लिखा है वाह।
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Satish Pandey wrote a new post, दुख-सुख का निरंतर चक्र है 5 days, 17 hours ago
मन !!जरा सी बात पर
तू मत दुखित हो इस तरह
जिन्दगी है हार भी है
जीत भी, संघर्ष भी।
गर कभी है अवनयन तो
है यहां उत्कर्ष भी।
डूबने का भय कभी है
तो कभी है नाव भी
है कभी ढलती पहाड़ी
और है चढ़ाव भी।
है कभी ख […] -
Satish Pandey wrote a new post, झूठ में सच मत छिपाने दो 6 days, 3 hours ago
भ्रष्टाचार खत्म करो
ऊपर की कमाई पर रोक लगाओ
सत्यता के भाव जगाओ
रातों-रात करोड़पति बनने की
प्रवृत्ति पर विराम लगाओ
नियम कानून जो बने हैं
उन्हें काम पर लगाओ,
गरीबों की योजनाओं को
उन तक पहुंचने दो
बिना लिए-द […] -
Satish Pandey commented on the post, ऐ ज़िन्दगी तेरा शुक्रिया 6 days, 3 hours ago
कवि गीता जी आपकी यह कविता जीवन की सुरम्यता से जुड़ी खूबसूरत कविता है। कविता में स्वकीयता के साथ परकीयता का भाव है। न दुष्कर भाव है और न शब्दों का आडंबर है, बल्कि बहुत ही खूबसूरत तरीक़े से जिंदगी पर प्रकाश डाला है। कविता में लिखी मन की बात सीधे पाठक मन से जुड़ने में सक्षम है। कविता में संवेदनशीलता के साथ सशक्त भाषा के ज़रिए प्रभावशाली ढंग प्रस्तुति दी गई हैं।
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Satish Pandey commented on the post, सबकुछ ये सरकार खा गई 6 days, 4 hours ago
कवि अजय अमिताभ जी की इस कविता में वर्तमान राजनीतिक हालात का बखूबी चित्रण किया गया है। इसमें ज्वलंत समस्याओं का समावेश बहुत ही शिद्दत से हुआ है। कविता की पंक्तियाँ सीधे मन को छू रही हैं। समूची दृष्टि से देखा जाये तो यह सिस्टम पर प्रहार करती बेहतरीन कविता है।
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Very very nice poem
बहुत ही सुंदर रचना
“दिल जोड़ लेना और अपना बोल लेना सरल है,
निभाना कठिन है। कुछ भी कह देना सरल है
कर पाना कठिन है,” जीवन की सच्चाइयों को उजागर करती हुई बेहद गंभीर रचना है यह ।अपना बोल लेना तो बहुत ही सरल है ,कठिन तो निभाना ही होता है। इसीलिए तो जो निभाते हैं,उनकी कद्र होती है, उन्हें लोग याद करते हैं।कवि सतीश जी की बहुत सुन्दर और दिल को छू लेने वाली कविता